मुझे लगता नहीं अच्छा रहूँगा
यूँ तेरे कू में गर आता रहूँगा
अड़ा है तू न मिलने की ही ज़िद पर
न जानूँ मैं के अब कैसा रहूँगा
तू यूँ ही तैरने आता रहे मैं
क़सम से उम्र भर दर्या रहूँगा
भले ही जाम टकराता हूँ शब् भर
मैं तेरी दीद का प्यासा रहूँगा
नसीब अब हो ही जाए हाथ इक दो
तू है बादिश तो मैं इक्का रहूँगा
रहा महरूम गर शिक़्वों से तेरे
भला मैं किस तरह ज़िन्दा रहूँगा
सँवारूँगा मैं किस्मत तेरी ग़ाफ़िल
भले टूटा हुआ तारा रहूँगा
-‘ग़ाफ़िल’
यूँ तेरे कू में गर आता रहूँगा
अड़ा है तू न मिलने की ही ज़िद पर
न जानूँ मैं के अब कैसा रहूँगा
तू यूँ ही तैरने आता रहे मैं
क़सम से उम्र भर दर्या रहूँगा
भले ही जाम टकराता हूँ शब् भर
मैं तेरी दीद का प्यासा रहूँगा
नसीब अब हो ही जाए हाथ इक दो
तू है बादिश तो मैं इक्का रहूँगा
रहा महरूम गर शिक़्वों से तेरे
भला मैं किस तरह ज़िन्दा रहूँगा
सँवारूँगा मैं किस्मत तेरी ग़ाफ़िल
भले टूटा हुआ तारा रहूँगा
-‘ग़ाफ़िल’
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, श्री कृष्ण, गीता और व्हाट्सअप “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ... लाजवाब शेर और कमाल की ग़ज़ल
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