हैं ख़रीदार भी बेशुमार आदमी
बेचता है धड़ल्ले से प्यार आदमी
बेवफ़ाओं की चर्चा सरेआम है
पर किये जा रहा ऐतबार आदमी
इश्क़ में जाँ लुटाने की फ़ुर्सत किसे
बस लगाता है यूँ ही गुहार आदमी
पॉलिसी इश्क़ के मॉर्केट की है यूँ
टूटता जा रहा कि़स्तवार आदमी
अश्क गौहर हैं आई न इतनी समझ
और रोता रहा जार जार आदमी
यार ग़ाफ़िल यही दौरे दुश्वार है
आदमी के हुआ सर का भार आदमी
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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