सुब्ह सूरज को अगर दीप दिखाने वाले
काश! हो पायँ दीया शब को जलाने वाले
सोचने से ही फ़क़त कुछ भी न हासिल होगा
सिर्फ़ तक़दीर पे ऐ अश्क बहाने वाले
सिर्फ़ तक़दीर पे ऐ अश्क बहाने वाले
बात बेढब है मगर फिर भी कहे देता हूँ
आईना ख़ुद भी कभी देखें दिखाने वाले
आईना ख़ुद भी कभी देखें दिखाने वाले
ये क़यामत का शबाब उसपे तबस्सुम तेरा
कितने अस्बाब हैं जी मेरा चुराने वाले
कितने अस्बाब हैं जी मेरा चुराने वाले
एक ग़ाफ़िल की ज़रा देखिए तासीरे अश्आर
शे’र सुन सो ही गये ताली बजाने वाले
शे’र सुन सो ही गये ताली बजाने वाले
-‘ग़ाफ़िल’
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