Wednesday, April 13, 2016

आए क़रार भी तो मुकरने के बाद ही

आए है लुत्फ़ यार पे मरने के बाद ही
जाना की संगे कू से गुज़रने के बाद ही

देखा है मैंने यह भी के हर बुततराश को
धोखा दिया बुतों ने संवरने के बाद ही

छाया दिलो दिमाग़ पे है इश्क़ का सुरूर
दुनिया दिखेगी लेकिन उतरने के बाद ही

मुझको जो दिलफ़रेब ने लाचार कर दिया
समझो के अश्क आँख में भरने के बाद ही

ग़ाफ़िल! जो चाहो चीज़ वो मिलती है क्या भला?
आए क़रार भी तो मुकरने के बाद ही

-‘ग़ाफ़िल’

4 comments:

  1. >> ग़रज़ी गराँ कीमती उस चीज का क्या कीजिये,
    मिले जो गरीबे-ग़म से गुज़रने के बाद ही.....

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  2. देखा है मैंने यह भी के हर बुततराश को
    धोखा दिया बुतों ने संवरने के बाद ही

    वाह.. वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई है सर, बहुत खूब। एक लम्बे अर्से के बाद पढ़ा आपको।

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