हंसाएगा, रुलाएगा, बहाने भी बनाएगा
पता है यह के तू हर गाम मुझको आज़माएगा
मुझे क़ाफ़िर कहा, माना के पीता हूँ निग़ाहों से
अरे क्या शेख़ अपना क़ाइदा यूँ ही चलाएगा?
कोई उम्मीद तो अब हो के मेरा यार शिद्दत से
तसव्वुर में ही लेकिन कोई शब मुझको बुलाएगा
है दिल अब हादिसों का शह्र, था जो अम्न की बस्ती
अदा-ओ-नाज़ से ज़ालिम तू कब तक क़ह्र ढाएगा
निशाना चूकना तेरी निग़ाहों का बदा है गर
तो आऊँ लाख तेरे सामने पर चूक जाएगा
लिया ग़ाफ़िल से है पंगा यक़ीं हो जाएगा ऐ दिल
के तेरी तर्फ़दारी में यहाँ कोई न आएगा
-‘ग़ाफ़िल’
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