सब्ज़ शजर को अंगारों से क्या लेना
एक बाग़बाँ को आरों से क्या लेना
भौंरे तो गुल का रस लेते हैं उनको
ऐ गुलाब तेरे ख़ारों से क्या लेना
चश्म देख सकते हैं फ़क़त बदन सबके
उनको सबके किरदारों से क्या लेना
लाख बनाता रहे राइफ़ल पिस्टल तू
उल्फ़त में इन हथियारों से क्या लेना
है रसूल देने वाला जब, फिर मुझको
दिल के मुफ़्लिस दरबारों से क्या लेना
हूँ मुरीद तेरा मौला, तू हुक़्म करे
मुझको तेरे हरकारों से क्या लेना
सुह्बत सेहतमंदों की होती अच्छी
ग़ाफ़िल दिल के बीमारों से क्या लेना
-‘ग़ाफ़िल’
एक बाग़बाँ को आरों से क्या लेना
भौंरे तो गुल का रस लेते हैं उनको
ऐ गुलाब तेरे ख़ारों से क्या लेना
चश्म देख सकते हैं फ़क़त बदन सबके
उनको सबके किरदारों से क्या लेना
लाख बनाता रहे राइफ़ल पिस्टल तू
उल्फ़त में इन हथियारों से क्या लेना
है रसूल देने वाला जब, फिर मुझको
दिल के मुफ़्लिस दरबारों से क्या लेना
हूँ मुरीद तेरा मौला, तू हुक़्म करे
मुझको तेरे हरकारों से क्या लेना
सुह्बत सेहतमंदों की होती अच्छी
ग़ाफ़िल दिल के बीमारों से क्या लेना
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-04-2017) को
उत्तर देंहटाएं"बना दिया हमें "फूल" (चर्चा अंक-2613
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक