और कितना चश्म को ख़ंजर लिखूँगा
अब न यूँ कुछ ऐ मेरे दिलबर लिखूँगा
बोझ गो सारे बदन का ढो रहा है
पाँव को पर सर भला क्यूँकर लिखूँगा
सच बयानी रास आए या न आए
पाँव को मैं पाँव सर को सर लिखूँगा
और कुछ लिक्खूँ न फिर भी कुछ न कुछ तो
मैैं तेरी वादाख़िलाफ़ी पर लिखूँगा
कर न पाया तू ग़मे दिल को रफ़ा तो
जाँसिताँ तुझको भी चारागर लिखूँगा
मानता हूँ मैं मुसन्निफ़ हूँ नहीं पर
जब लिखूँगा और से बेहतर लिखूँगा
हूँ मगर इतना भी मैं ग़ाफ़िल नहीं हूँ
ख़ुद की जो आवारगी अक़्सर लिखूँगा
-‘ग़ाफ़िल’
अब न यूँ कुछ ऐ मेरे दिलबर लिखूँगा
बोझ गो सारे बदन का ढो रहा है
पाँव को पर सर भला क्यूँकर लिखूँगा
सच बयानी रास आए या न आए
पाँव को मैं पाँव सर को सर लिखूँगा
और कुछ लिक्खूँ न फिर भी कुछ न कुछ तो
मैैं तेरी वादाख़िलाफ़ी पर लिखूँगा
कर न पाया तू ग़मे दिल को रफ़ा तो
जाँसिताँ तुझको भी चारागर लिखूँगा
मानता हूँ मैं मुसन्निफ़ हूँ नहीं पर
जब लिखूँगा और से बेहतर लिखूँगा
हूँ मगर इतना भी मैं ग़ाफ़िल नहीं हूँ
ख़ुद की जो आवारगी अक़्सर लिखूँगा
-‘ग़ाफ़िल’
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