तुझे चाहा, है हिज़्र इसकी सज़ा क्या
बता मेरी ख़ता है और क्या क्या
दहकती आग सी आँखों में तेरी
कोई अब भी तो डूबा है, जला क्या
ज़माना हो गया आतिश उगलते
ज़रा अब देख तो ले है बचा क्या
शरारा जो छुपाया था तू जी में
सवाल अब है के शोला बन उठा क्या
मेरे ख़त का था गो मज़्मून वाज़िब
नहीं मालूम है तूने पढ़ा क्या
कभी भी तो न अपने सिलसिले थे
बहारों से अब अपना सिलसिला क्या
अरे ग़ाफ़िल तू क्या क्या बक रहा है
तेरा अब होश भी जाता रहा क्या
-‘ग़ाफ़िल’
बता मेरी ख़ता है और क्या क्या
दहकती आग सी आँखों में तेरी
कोई अब भी तो डूबा है, जला क्या
ज़माना हो गया आतिश उगलते
ज़रा अब देख तो ले है बचा क्या
शरारा जो छुपाया था तू जी में
सवाल अब है के शोला बन उठा क्या
मेरे ख़त का था गो मज़्मून वाज़िब
नहीं मालूम है तूने पढ़ा क्या
कभी भी तो न अपने सिलसिले थे
बहारों से अब अपना सिलसिला क्या
अरे ग़ाफ़िल तू क्या क्या बक रहा है
तेरा अब होश भी जाता रहा क्या
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत खूब
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