बेवफ़ा मैं आज हूँ कल बावफ़ा हो जाऊँगा
तू नज़र भर देख तो ले क्या से क्या हो जाऊँगा
आ तो मेरे सामने तू सज सँवर कर एक दिन
है सिफ़त मुझमें तेरा मैं आईना हो जाऊँगा
यूँ ही आगे भी सताया तू नहीं मुझको अगर
तुझसे फिर मैं ज़िन्दगी भर को ख़फ़ा हो जाऊँगा
है तुझे क्या इल्म भी रस्मे वफ़ा क्या चीज़ है
खेलना चाहेगा मुझको खेल सा हो जाऊँगा
तू हुआ ग़ाफ़िल अगर मेरी मुहब्बत से कभी
बस उसी ही पल यक़ीनन मैं हवा हो जाऊँगा
-‘ग़ाफ़िल’
तू नज़र भर देख तो ले क्या से क्या हो जाऊँगा
आ तो मेरे सामने तू सज सँवर कर एक दिन
है सिफ़त मुझमें तेरा मैं आईना हो जाऊँगा
यूँ ही आगे भी सताया तू नहीं मुझको अगर
तुझसे फिर मैं ज़िन्दगी भर को ख़फ़ा हो जाऊँगा
है तुझे क्या इल्म भी रस्मे वफ़ा क्या चीज़ है
खेलना चाहेगा मुझको खेल सा हो जाऊँगा
तू हुआ ग़ाफ़िल अगर मेरी मुहब्बत से कभी
बस उसी ही पल यक़ीनन मैं हवा हो जाऊँगा
-‘ग़ाफ़िल’
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुअत ही उम्दा रचना। ..
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