Monday, June 05, 2017

चुभी पर मुझे तो तेरी ही नज़र है

जो रुस्वाइयों की हसीं सी डगर है
भला क्यूँ जी उस पर ही ज़ेरे सफ़र है

तेरी याद में आ तो जाऊँ मैं लेकिन
तू फिर भूल जाएगा मुझको ये डर है

हूँ मैं ही तराशा ख़ुदा जो बना तू
अरे संग इसकी तुझे क्या ख़बर है

सबक इश्क़ का बेश्तर याद करना
लगे गोया इसमें ही सारी उमर है

हूँ क़ाइल शबे वस्ल का इसलिए मैं
के यह चुलबुली है भले मुख़्तसर है

ज़माना कहे तो कहे तुझको ग़ाफ़िल
चुभी पर मुझे तो तेरी ही नज़र है

-‘ग़ाफ़िल’

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