ज़रर हर मर्तबा वालों को बतलाया नहीं करते
फ़लक़ छू लें भले ही ताड़ पर छाया नहीं करते
बताओ डालोगे काँटा भला कितनी मछलियों पर
किसी के जी से यूँ खिलवाड़ ऐ भाया नहीं करते
सुना दो लंतरानी ही के जाए जी बहल अपना
कभी मासूम को मायूस कर जाया नहीं करते
अगर ग़मख़्वार हो तो आओ सच में ग़मग़लत कर दो
अरे ग़मग़ीन को ख़्वाबों में उलझाया नहीं करते
मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार मुझको मत समझ लेना
निगाहे बद कभी इंसाँ पे दौड़ाया नहीं करते
हमेशा मुस्कुराते हैं जो कोई उनको समझाओ
जनाज़े पर किसी के जाके मुस्काया नहीं करते
ज़ुरूरत हो नहीं तब भी मुख़ालिफ़ दौड़ आते हैं
ज़ुरूरत पर भी ग़ाफ़िल दोस्त कुछ आया नहीं करते
-‘ग़ाफ़िल’
फ़लक़ छू लें भले ही ताड़ पर छाया नहीं करते
बताओ डालोगे काँटा भला कितनी मछलियों पर
किसी के जी से यूँ खिलवाड़ ऐ भाया नहीं करते
सुना दो लंतरानी ही के जाए जी बहल अपना
कभी मासूम को मायूस कर जाया नहीं करते
अगर ग़मख़्वार हो तो आओ सच में ग़मग़लत कर दो
अरे ग़मग़ीन को ख़्वाबों में उलझाया नहीं करते
मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार मुझको मत समझ लेना
निगाहे बद कभी इंसाँ पे दौड़ाया नहीं करते
हमेशा मुस्कुराते हैं जो कोई उनको समझाओ
जनाज़े पर किसी के जाके मुस्काया नहीं करते
ज़ुरूरत हो नहीं तब भी मुख़ालिफ़ दौड़ आते हैं
ज़ुरूरत पर भी ग़ाफ़िल दोस्त कुछ आया नहीं करते
-‘ग़ाफ़िल’
बूढे का जनाजा हो तो भी😀😀
ReplyDeleteगजब अंदाज, गाफिल साहब
हाहाहा शुक्रिया संदीप जी
Deletesundar badhai
ReplyDeleteशुक्रिया जी
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