Sunday, June 25, 2017

जनाज़े पर किसी के जाके मुस्काया नहीं करते

ज़रर हर मर्तबा वालों को बतलाया नहीं करते
फ़लक़ छू लें भले ही ताड़ पर छाया नहीं करते

बताओ डालोगे काँटा भला कितनी मछलियों पर
किसी के जी से यूँ खिलवाड़ ऐ भाया नहीं करते

सुना दो लंतरानी ही के जाए जी बहल अपना
कभी मासूम को मायूस कर जाया नहीं करते

अगर ग़मख़्वार हो तो आओ सच में ग़मग़लत कर दो
अरे ग़मग़ीन को ख़्वाबों में उलझाया नहीं करते

मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार मुझको मत समझ लेना
निगाहे बद कभी इंसाँ पे दौड़ाया नहीं करते

हमेशा मुस्कुराते हैं जो कोई उनको समझाओ
जनाज़े पर किसी के जाके मुस्काया नहीं करते

ज़ुरूरत हो नहीं तब भी मुख़ालिफ़ दौड़ आते हैं
ज़ुरूरत पर भी ग़ाफ़िल दोस्त कुछ आया नहीं करते

-‘ग़ाफ़िल’

4 comments:

  1. बूढे का जनाजा हो तो भी😀😀
    गजब अंदाज, गाफिल साहब

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  2. Replies
    1. शुक्रिया जी

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