आदमी कितना हैं हम और खिलौना कितना
सोचना चाहिए गो फिर भी यूँ सोचा कितना
क्या हुआ ख़ामियों का लोग उड़ाते हैं मज़ाक
ख़ूबियों का ही यहाँ होता है सुह्रा कितना
बेतरह दिल पे है क़ाबिज़ जो कहीं से आकर
सोचता हूँ के है उस शख़्स का हिस्सा कितना
उठ रहा मेरा जनाज़ा था जब इस दुनिया से
हाय! क़ातिल भी मेरा अश्क बहाया कितना!!
कोई बूढ़ा न हुआ कोई जवाँ भी तो नहीं
आख़िर इस शह्र का अब होगा तमाशा कितना?
ठीक है तेरी ये महफ़िल हो मुबारक तुझको
वैसे भी मेरा इधर होता है आना कितना
वस्ल के शब् की क़शिश साथ है ग़ाफ़िल फिर भी
ज़िन्दगी ख़ुद को समझ बैठी है तन्हा कितना
-‘ग़ाफ़िल’
सोचना चाहिए गो फिर भी यूँ सोचा कितना
क्या हुआ ख़ामियों का लोग उड़ाते हैं मज़ाक
ख़ूबियों का ही यहाँ होता है सुह्रा कितना
बेतरह दिल पे है क़ाबिज़ जो कहीं से आकर
सोचता हूँ के है उस शख़्स का हिस्सा कितना
उठ रहा मेरा जनाज़ा था जब इस दुनिया से
हाय! क़ातिल भी मेरा अश्क बहाया कितना!!
कोई बूढ़ा न हुआ कोई जवाँ भी तो नहीं
आख़िर इस शह्र का अब होगा तमाशा कितना?
ठीक है तेरी ये महफ़िल हो मुबारक तुझको
वैसे भी मेरा इधर होता है आना कितना
वस्ल के शब् की क़शिश साथ है ग़ाफ़िल फिर भी
ज़िन्दगी ख़ुद को समझ बैठी है तन्हा कितना
-‘ग़ाफ़िल’
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