तूने चाहा था जो वो जी भर मिला
तू ही कह क्या तू भी मुझको पर मिला
आज तक फुटपाथ पर था जी को अब
तू दिखा लगता है सुन्दर घर मिला
रब्त क़ायम हो न पाया गो के तू
आते जाते राह में अक़्सर मिला
शह्रे जाना में गया मैं जब कभी
हर बशर क्यूँ मुझको दीदःवर मिला
कैसे कह पाता मैं ग़ाफ़िल हाले दिल
जब मिला तू जामे से बाहर मिला
-‘ग़ाफ़िल’
तू ही कह क्या तू भी मुझको पर मिला
आज तक फुटपाथ पर था जी को अब
तू दिखा लगता है सुन्दर घर मिला
रब्त क़ायम हो न पाया गो के तू
आते जाते राह में अक़्सर मिला
शह्रे जाना में गया मैं जब कभी
हर बशर क्यूँ मुझको दीदःवर मिला
कैसे कह पाता मैं ग़ाफ़िल हाले दिल
जब मिला तू जामे से बाहर मिला
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-03-2017) को "मन्दिर का उन्माद" (चर्चा अंक-2911) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'