कहूँ किससे के ग़म भाई बहुत है
यहाँ सबसे शनासाई बहुत है
तो क्या समझूँ इसे इक़रारे उल्फ़त
वो मुझसे आज शरमाई बहुत है
कहाँ मुम्क़िन है उसको भूल पाना
तसव्वुर में वो जो आई बहुत है
मैं सर ले लूँगा उसकी हर बलाएँ
कभी उसकी क़सम खाई बहुत है
न मैं ज़ाहिर करूँगा औरों पर यह
मगर सच है वो हरज़ाई बहुत है
एक क़त्आ-
नहीं इल्ज़ाम है उसपे ये ग़ाफ़िल
के उसके चलते रुस्वाई बहुत है
दिले नादान के लुटने पे मेरे
वही बस एक मुस्काई बहुत है
-‘ग़ाफ़िल’
यहाँ सबसे शनासाई बहुत है
तो क्या समझूँ इसे इक़रारे उल्फ़त
वो मुझसे आज शरमाई बहुत है
कहाँ मुम्क़िन है उसको भूल पाना
तसव्वुर में वो जो आई बहुत है
मैं सर ले लूँगा उसकी हर बलाएँ
कभी उसकी क़सम खाई बहुत है
न मैं ज़ाहिर करूँगा औरों पर यह
मगर सच है वो हरज़ाई बहुत है
एक क़त्आ-
नहीं इल्ज़ाम है उसपे ये ग़ाफ़िल
के उसके चलते रुस्वाई बहुत है
दिले नादान के लुटने पे मेरे
वही बस एक मुस्काई बहुत है
-‘ग़ाफ़िल’
No comments:
Post a Comment