रुख़ पे उल्फ़त के जो जेवर नहीं देखे जाते
आईने ऐसे भी शब भर नहीं देखे जाते
देखा जाता है महज़ उड़ता है कितना कोई
उड़ने वालों के कभी पर नहीं देखे जाते
ये ही क्या कम है के हो जाते हैं जी को महसूस
आप इस तर्फ़ तो अक़्सर नहीं देखे जाते
हो तबस्सुम जो लबों पर तो बने बात भी कुछ
ऐंठे ऐंठे हुए तेवर नहीं देखे जाते
आओ क्यूँ हम भी न इस जश्न में शामिल हो लें
खेल अब इश्क़ के छुपकर नहीं देखे जाते
आएगी वस्ल की शब अपनी भी क्या ग़ाफ़िल जी
आप तो अपने से बाहर नहीं देखे जाते
-‘ग़ाफ़िल’
आईने ऐसे भी शब भर नहीं देखे जाते
देखा जाता है महज़ उड़ता है कितना कोई
उड़ने वालों के कभी पर नहीं देखे जाते
ये ही क्या कम है के हो जाते हैं जी को महसूस
आप इस तर्फ़ तो अक़्सर नहीं देखे जाते
हो तबस्सुम जो लबों पर तो बने बात भी कुछ
ऐंठे ऐंठे हुए तेवर नहीं देखे जाते
आओ क्यूँ हम भी न इस जश्न में शामिल हो लें
खेल अब इश्क़ के छुपकर नहीं देखे जाते
आएगी वस्ल की शब अपनी भी क्या ग़ाफ़िल जी
आप तो अपने से बाहर नहीं देखे जाते
-‘ग़ाफ़िल’
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, १७ मार्च - भारत के दो नायाब नगीनों की जयंती का दिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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