निगाहे लुत्फ़ तेरा हो किधर भी जाने जिगर
नज़र से अपनी मगर मेरी तर्फ़ देखा कर
चला तो और ही सू जाने क्यूँ मगर मुझको
है खेंच लाई कशिश तेरी तेरे घर अक़्सर
लगा हो रोग मुहब्बत का फिर भला उसका
करे तो कैसे करेगा इलाज़ चारागर
कहेंगे आप इसे क्या के शब थी सावन की
जला था उसमें मुसल्सल हमारे दिल का नगर
नहीं पता है चला है किधर से ग़ाफ़िल जी
खुबा हुआ है मगर सीने में कोई नश्तर
-‘ग़ाफ़िल’
नज़र से अपनी मगर मेरी तर्फ़ देखा कर
चला तो और ही सू जाने क्यूँ मगर मुझको
है खेंच लाई कशिश तेरी तेरे घर अक़्सर
लगा हो रोग मुहब्बत का फिर भला उसका
करे तो कैसे करेगा इलाज़ चारागर
कहेंगे आप इसे क्या के शब थी सावन की
जला था उसमें मुसल्सल हमारे दिल का नगर
नहीं पता है चला है किधर से ग़ाफ़िल जी
खुबा हुआ है मगर सीने में कोई नश्तर
-‘ग़ाफ़िल’
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