Sunday, March 25, 2018

तुझे इश्क़ भी जानेजाना सिखा दूँ

तू आ मैं ग़ज़ल गुनगुनाना सिखा दूँ
अकेले में ही मुस्कुराना सिखा दूँ

है तुझमें कशिश बाँकपन है चमिश है
तुझे इश्क़ भी जानेजाना सिखा दूँ

ये माना हैं दिलकश अदाएँ तेरी बस
उन्हें मैं ज़रा सा लजाना सिखा दूँ

गो कोशिश निभाने की तेरी है फिर भी
सलीके से उल्फ़त निभाना सिखा दूँ

मिले कोई ग़ाफ़िल जो मुझसा तो उस पर
लगाते हैं कैसे निशाना, सीखा दूँ

-‘ग़ाफ़िल’

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-03-2018) को ) "सुख वैभव माँ तुमसे आता" (चर्चा अंक-2921) पर होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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