नाज़ अँधेरों के भी उठाते हैं
दीये गोया हमीं जलाते हैं
हैं फ़क़त ख़्वाब ही नहीं वे ख़्वाब
जागे जागे जो देखे जाते हैं
हो न हो ख़ुद को देखने की ताब
आईना लोग पर दिखाते हैं
जो न आते हों सोच उनके लिए
तेरे दिल तक हम आते जाते हैं
कोई ग़ाफ़िल से आके पूछ तो ले
हादिसे किस क़दर लुभाते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
दीये गोया हमीं जलाते हैं
हैं फ़क़त ख़्वाब ही नहीं वे ख़्वाब
जागे जागे जो देखे जाते हैं
हो न हो ख़ुद को देखने की ताब
आईना लोग पर दिखाते हैं
जो न आते हों सोच उनके लिए
तेरे दिल तक हम आते जाते हैं
कोई ग़ाफ़िल से आके पूछ तो ले
हादिसे किस क़दर लुभाते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
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