शख़्स कोई शम्स से क्यूँकर मिले
और फिर वह गर लगाकर पर मिले
राह का जिनको हुनर कुछ भी न था
ऐसे ही सब मील के पत्थर मिले
दर्दे दिल मेरा बढ़ाए ही कुछ और
आह इसी ख़ूबी के चारागर मिले
साथ चलना था शुरू से ही हुज़ूर
आज हम लेकिन दोराहे पर मिले
सामना ग़ाफ़िल करेगा किस तरह
तुझसे गर ग़ाफ़िल कोई बेहतर मिले
-‘ग़ाफ़िल’
और फिर वह गर लगाकर पर मिले
राह का जिनको हुनर कुछ भी न था
ऐसे ही सब मील के पत्थर मिले
दर्दे दिल मेरा बढ़ाए ही कुछ और
आह इसी ख़ूबी के चारागर मिले
साथ चलना था शुरू से ही हुज़ूर
आज हम लेकिन दोराहे पर मिले
सामना ग़ाफ़िल करेगा किस तरह
तुझसे गर ग़ाफ़िल कोई बेहतर मिले
-‘ग़ाफ़िल’
No comments:
Post a Comment