वो अपने सीने से ऐसे लगा रहा है मुझे
के जैसे ख़्वाब था मैं सच में पा रहा है मुझे
ये हिचकियाँ हैं सनद यह के है कोई तो जो
अभी भी यादों में अपनी बुला रहा है मुझे
सितम तो ये है के जाना था और ही जानिब
मगर कहाँ वो लिए जी में जा रहा है मुझे
कहूँ मैं कैसे के किस तौर ग़मग़ुसार मेरा
मेरा ही अश्के मुक़द्दस पिला रहा है मुझे
दिखाऊँ शीशा ज़माने को किस तरह ग़ाफ़िल
खुला खुला सा वो क्या क्या दिखा रहा है मुझे
-‘ग़ाफ़िल’
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