मुझे है याद क्या क्या जाने जाना छोड़ देना था;
तेरा हर हाल मुझको आज़माना छोड़ देना था।
है छूट उल्फ़त में नज़रों से फ़क़त, पीने पिलाने की;
ज़रीयन दस्त मै पीना पिलाना छोड़ देना था।
हर आशिक़ को ख़ुदा के बंदे का है मर्तबा हासिल;
अरे यह क्या के उसको कह दीवाना छोड़ देना था।
अगर आए कभी आड़े ज़माना इश्क़ में अपने;
अहद यह थी के उस ही दम ज़माना छोड़ देना था।
रक़ीबों की रहन है क्या इसी बाबत भला मुझको;
तेरे दिल के नगर तक आना जाना छोड़ देना था।
ये माना है नया साथी नया रास्ता नयी मंज़िल;
मगर क्या तज़्रिबा अपना पुराना छोड़ देना था।
समझता रब है ख़ुद को उसको तो ग़ाफ़िल बहुत पहले;
भले कितना भी है वो जाना माना, छोड़ देना था।
-‘ग़ाफ़िल’
तेरा हर हाल मुझको आज़माना छोड़ देना था।
है छूट उल्फ़त में नज़रों से फ़क़त, पीने पिलाने की;
ज़रीयन दस्त मै पीना पिलाना छोड़ देना था।
हर आशिक़ को ख़ुदा के बंदे का है मर्तबा हासिल;
अरे यह क्या के उसको कह दीवाना छोड़ देना था।
अगर आए कभी आड़े ज़माना इश्क़ में अपने;
अहद यह थी के उस ही दम ज़माना छोड़ देना था।
रक़ीबों की रहन है क्या इसी बाबत भला मुझको;
तेरे दिल के नगर तक आना जाना छोड़ देना था।
ये माना है नया साथी नया रास्ता नयी मंज़िल;
मगर क्या तज़्रिबा अपना पुराना छोड़ देना था।
समझता रब है ख़ुद को उसको तो ग़ाफ़िल बहुत पहले;
भले कितना भी है वो जाना माना, छोड़ देना था।
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-06-2018) को "हम लेखनी से अपनी मशहूर हो रहे हैं" (चर्चा अंक-3016) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'