Saturday, April 21, 2018

गो हम आस पास होंगे

कभी मझको भूल जाना गो हम आस पास होंगे
कभी तुम न याद आना गो हम आस पास होंगे

अभी ख़्वाबों में तुम्हारे कई लोग आएँगे जी
मुझे अब न तुम बुलाना गो हम आस पास होंगे

कहीं जी मचल न जाए मैं न सुन सकूँगा अब और
यूँ तुम्हारा गुनगुनाना गो हम आस पास होंगे

कभी खिल भी जाएँ गुंचे हो भी ख़ुश्बुओं का मेला
ये न चाहेगा ज़माना गो हम आस पास होंगे

चले आज तीर ग़ाफ़िल नहीं आगे फिर लगे या
न लगे कभी निशाना गो हम आस पास होंगे

-‘ग़ाफ़िल’

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-04-2017) को "पृथ्वी दिवस-बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक-2947) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जोकर और उसका मुखौटा “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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