जिस्म जलता है जाँ तड़पती है
मौत आ जा कमी तेरी ही है
जिसको गाया नहीं कोई अबतक
वो ग़ज़ल ज़िन्दगी की मेरी है
जाके देखेगा होगा तब मालूम
है वो मंज़िल के उसके जैसी है
इतने अह्बाब हैं तेरे ग़ाफि़ल
रात तन्हा मगर गुज़रती है
-‘ग़ाफ़िल’
मौत आ जा कमी तेरी ही है
जिसको गाया नहीं कोई अबतक
वो ग़ज़ल ज़िन्दगी की मेरी है
जाके देखेगा होगा तब मालूम
है वो मंज़िल के उसके जैसी है
इतने अह्बाब हैं तेरे ग़ाफि़ल
रात तन्हा मगर गुज़रती है
-‘ग़ाफ़िल’
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