फिर भी शिक़्वा है कहाँ उनसे हमें
गो गए छोड़ हर इक अपने हमें
साथ उनके ही शबे हिज़्र बहुत
उनके अश्वाक़ भी याद आए हमें
मेरे अपनों ने है ऐसे लूटा
ग़ैर चाहे भी तो क्या लूटे हमें
-‘ग़ाफ़िल’
(अश्वाक़=शौक़ का बहुवचन)
गो गए छोड़ हर इक अपने हमें
साथ उनके ही शबे हिज़्र बहुत
उनके अश्वाक़ भी याद आए हमें
मेरे अपनों ने है ऐसे लूटा
ग़ैर चाहे भी तो क्या लूटे हमें
-‘ग़ाफ़िल’
(अश्वाक़=शौक़ का बहुवचन)
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