क्यूँ कहूँ मैं के क्या हुस्न का कीजिए
हो सके इश्क़ का भी भला कीजिए
छा गये आप ज़ेह्नो जिगर पर भले
और अब कुछ न जी का बुरा कीजिए
मैं तो हँसता हूँ हालाते नाज़ुक पे भी
आप रो क्यूँ रहे हैं हँसा कीजिए
इसकी फ़ित्रत है कब ले ले आगोश में
हुस्न को देखते ही रहा कीजिए
रोकता है ज़़मीर और जी कह रहा
आप भी ज़िन्दगी में मज़ा कीजिए
हाँ ये माना नशा है बुरी चीज़ पर
प्यार का हो सके तो नशा कीजिए
आप हैं तो मगर ठीक यह भी नहीं
है के हर वक़्त ग़ाफ़िल रहा कीजिए
-‘ग़ाफ़िल’
हो सके इश्क़ का भी भला कीजिए
छा गये आप ज़ेह्नो जिगर पर भले
और अब कुछ न जी का बुरा कीजिए
मैं तो हँसता हूँ हालाते नाज़ुक पे भी
आप रो क्यूँ रहे हैं हँसा कीजिए
इसकी फ़ित्रत है कब ले ले आगोश में
हुस्न को देखते ही रहा कीजिए
रोकता है ज़़मीर और जी कह रहा
आप भी ज़िन्दगी में मज़ा कीजिए
हाँ ये माना नशा है बुरी चीज़ पर
प्यार का हो सके तो नशा कीजिए
आप हैं तो मगर ठीक यह भी नहीं
है के हर वक़्त ग़ाफ़िल रहा कीजिए
-‘ग़ाफ़िल’
No comments:
Post a Comment