कम भी था क्या के तमाशा जो हुआ और अभी
बात कुछ और है लहजा है तेरा और अभी
और अभी मेरे तसव्वुर में तुझे रहना है
होना रुस्वा है तेरा अह्दे वफ़ा और अभी
इश्रतें हुस्न की तेरी हों मुबारक तुझको
अपनी तक़्दीर में है शिक्वा गिला और अभी
इश्क़ बेबाकियों का होता है मोहताज कहाँ
क्यूँ कहा फिर के तू आ खुलके ज़रा और अभी
इल्म तो होगा ही पर फिर भी बता क्या ख़ुद का
देखना चाहेगा अंदाज़े जफ़ा और अभी
तेग़ उठाया ही था वह पूछा मज़ा आया क्या
क़त्ल कर कहता है आएगा मज़ा और अभी
तेग़ उठाया ही था वह पूछा मज़ा आया क्या
क़त्ल कर कहता है आएगा मज़ा और अभी
ऐसे अश्आर जो पचते ही नहीं हैं ग़ाफ़िल
लाख इंकार पे क्यूँ तूने कहा और अभी
-‘ग़ाफ़िल’
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