🔥राख कर देती है छू भर जाए ग़ाफ़िल जिस्म से
आग की हर इक लपट आँखों को पर भाती है खूब🔥
नमन् साथियो! गणित तो आती नहीं कि गिनकर बताऊँ कितना साल हुआ पर सन् 1988 का आज ही का रोज़ था जब ढोल बाजे के साथ उत्सव मनाते हुए मुझे भी अर्द्धांगिनी के रूप में यह हसीन तोहफ़ा प्राप्त हुआ था
-‘ग़ाफ़िल’
शुभकामनाएं विवाह वर्षगाँठ पर।
ReplyDeleteआभार आदरेय
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ReplyDeleteये तोहफा नहीं साहब कृष्णा की अमानत है ,
ये हैं ,सब सही सलामत हैं।
veerubhai1947.blogspot.com
धन्यवाद आदरणीय
Deleteशुभकामनाएँ
ReplyDeleteशुक्रिया जनाब
Deleteधन्यवाद आदरणीय
ReplyDeleteनिमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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