आँख भर मैंने तुझको जब देखा।
क्या बताऊँ के क्या ग़ज़ब देखा॥
दिल भी धड़का है, ओंठ भी मचले,
मैंने जो यह तेरा ग़बब देखा।
लाम से ग़ेसुओं की गुस्ताख़ी,
तेरे रुख़सार का करब देखा।
ये ख़ुदकुशी है या अदा-क़ातिल,
के चमिश में भी इक अदब देखा।
दिल मेरा तेरी कमाने-अब्रू,
और न मौत का सबब देखा।
तीर आकर जिगर के पार हुआ,
हाय! 'ग़ाफ़िल' ने उसको तब देखा।
( ग़बब=ठुड्ढ़ी के नीचे का मासल भाग, क़रब=बेचैन होना, बेचैनी, दुःखी होना
चमिश=लचक, इठलाहट )
"ये ख़ुदकुशी है या अदा-क़ातिल,
ReplyDeleteके चमिश में भी इक अदब देखा।"...kitne gahre bhavon k sath likha hai aapne...ye do panktiyan ye cheekh cheekh k bayan kr rhi hai....bhut sundar krati Gafil ji..bhut bhut badhai...
बहुत ही शानदार गज़ल्।
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल पढ़कर आनंद आ जता है सर,
ReplyDeleteसादर....
शानदार गजल ,बहुत ही खूब .आभार.
ReplyDeleteये ख़ुदकुशी है या अदा-क़ातिल,
ReplyDeleteके चमिश में भी इक अदब देखा।.....waah
वाकई बहुत सुंदर गजल है
ReplyDeleteक्या कहूं, अच्छा लिखना तो आपकी आदत में शुमार है। बहुत सुंदर
ReplyDeleteदिल भी धड़का है, ओंठ भी मचले,
मैंने जो यह तेरा ग़बब देखा।
बहुत ही गज़ब की है आपकी ग़ज़ल...
ReplyDeleteबहुत खूब..आनन्द आ गया...
ReplyDeleteतीर आकर जिगर के पार हुआ,
हाय! 'ग़ाफ़िल' ने उसको तब देखा।
dilkash..i enjoyed
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteइतनी खूबसूरत ग़ज़ल!
दो बार पढ़ चुका हूँ इसको!
दिल भी धड़का है, ओंठ भी मचले,
ReplyDeleteमैंने जो यह तेरा ग़बब देखा।
क्या बात है.....
दिल भर ही नहीं रहा पढ़ पढ़ के ....
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी है! सूचनार्थ निवेदन है!
ReplyDeleteचलो,
ReplyDeleteअब काफी पढ़े-लिखे
हो रहे हैं लोग |
तारीफ़ का अंदाज
आएगा उन्हें पसंद |
वैसे तो दखल रखते हैं
साहित्य में भी
पर मायने जो पेश किये
समझ ही लेंगे हर बंद ||
जल्दी ही होगी
सुनवाई ||
बधाई ||
bahut pyari ghazal hai.bahut achchi lagi.
ReplyDeleteतीर आकर जिगर के पार हुआ,
ReplyDeleteहाय! 'ग़ाफ़िल' ने उसको तब देखा।
मिश्र जी
यह स्थिति गाफिल जैसी नहीं ,घायल जैसी लगती है .
बहुत सुन्दर पोस्ट और उतनी ही सुन्दर प्रस्तुति भी ,बधाई
तीर आकर जिगर के पार हुआ,
ReplyDeleteहाय! 'ग़ाफ़िल' ने उसको तब देखा।
अद्भुत! कमाल!!
ज्यों-ज्यों आपको और आपकी ग़ज़लों को पढ़ रहा हूं, आपके प्रति सम्मान और आकर्षण बढ़ता जा रहा है। हरेक शे’र में कितनी बातें आप समा देते हैं ... सिम्प्ली ब्रिलिएंट।
तीर आकर जिगर के पार हुआ,
ReplyDeleteहाय! 'ग़ाफ़िल' ने उसको तब देखा।
बहुत खूब ... बहुत खूब ... बहुत खूब ...
बेहतरीन ग़ज़ल .....
ReplyDeleteतीर आकर जिगर के पार हुआ,
ReplyDeleteहाय! 'ग़ाफ़िल' ने उसको तब देखा।
truly brilliant piercing with emotion to emotions . thanks .
बहुत खूब ....लाजबाब
ReplyDeleteये ग़ज़ल पोस्ट हुई थी कल ही,
ReplyDeleteओह , मैंने इसे है अब देखा !
विलम्ब के लिए sorry, गाफिल जी.
बहुत ही शानदार गज़ल्।
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल....इक इक शेर शानदार.
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह....शानदार ग़ज़ल
ReplyDeleteशानदार गज़ल्।
ReplyDeleteएक शानदार ग़ज़ल.......
ReplyDeleteआकर्षण
बेहद खूबसूरत गजल. आभार...
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.