तेरे सिम्त सजती हैं बज़्मे-बहाराँ,
मेरे सू तो मेरी ही शैदादिली है।
तुझे हो मुबारक़ ज़माने की रँगत,
ता'हद्दे-नज़र मेरे स्याही खिली है॥
नयी क़ैफ़ियत ये नये दौर की है,
तिहीदस्ती फ़ैय्याज़ों में जोर की है।
समन्दर के दर पे भी जा करके देखा,
मेरी प्यास उससे कहीं भी भली है॥
वो ताबानी सूरज की बदली में गुम है,
चमक चाँदनी की भी जुगुनू से कम है।
हैं दरिया की लहरें सराबी-शिगूफा,
सज़र भी हैं मुफ़लिस, हवा बद चली है॥
गया सूख बेवक़्त आँखों का पानी,
नहीं गीत में भी है कोई रवानी।
छमक भी है गायब सभी पायलों से,
पड़ी आज सूनी सी सुर की गली है॥
हुई किस क़दर रात चोरी यहाँ पे,
बता चाँद सबकी है ख़ूबी कहाँ पे।
जो गुल ख़ूबसूरत तो ख़ुश्बू जुदा है,
जो तोड़ी गयी है वो नाज़ुक कली है॥
अगन ने जलाया मेरा आशियाना,
ये ग़ाफ़िल भी है आज कैसा बेगाना।
हरी वादियों का हुआ रंग ख़ूनी,
चिता आल की देखो पहले जली है॥
(सू=तरफ़, तिहीदस्ती=हाथ का खालीपन, फ़ैयाज=दानी, सराबी-शिगूफ़ा=मृगमरीचिका जैसा भ्रम, आल=नाती,पोते)
मेरे सू तो मेरी ही शैदादिली है।
तुझे हो मुबारक़ ज़माने की रँगत,
ता'हद्दे-नज़र मेरे स्याही खिली है॥
नयी क़ैफ़ियत ये नये दौर की है,
तिहीदस्ती फ़ैय्याज़ों में जोर की है।
समन्दर के दर पे भी जा करके देखा,
मेरी प्यास उससे कहीं भी भली है॥
वो ताबानी सूरज की बदली में गुम है,
चमक चाँदनी की भी जुगुनू से कम है।
हैं दरिया की लहरें सराबी-शिगूफा,
सज़र भी हैं मुफ़लिस, हवा बद चली है॥
गया सूख बेवक़्त आँखों का पानी,
नहीं गीत में भी है कोई रवानी।
छमक भी है गायब सभी पायलों से,
पड़ी आज सूनी सी सुर की गली है॥
हुई किस क़दर रात चोरी यहाँ पे,
बता चाँद सबकी है ख़ूबी कहाँ पे।
जो गुल ख़ूबसूरत तो ख़ुश्बू जुदा है,
जो तोड़ी गयी है वो नाज़ुक कली है॥
अगन ने जलाया मेरा आशियाना,
ये ग़ाफ़िल भी है आज कैसा बेगाना।
हरी वादियों का हुआ रंग ख़ूनी,
चिता आल की देखो पहले जली है॥
(सू=तरफ़, तिहीदस्ती=हाथ का खालीपन, फ़ैयाज=दानी, सराबी-शिगूफ़ा=मृगमरीचिका जैसा भ्रम, आल=नाती,पोते)
क्या बात है, बहुत सुंदर। सच कहूं तो मुझे आपकी नई पोस्ट का इंतजार रहता है।
ReplyDeleteअगन ने जलाया मेरा आशियाना,
ग़ाफ़िल भी है आज कैसा बेगाना।
हरी वादियों का हुआ रंग खूनी,
चिता आल की सबसे पहले जली है॥
गया सूख बेवक़्त आँखों का पानी,
ReplyDeleteनहीं गीत में भी है कोई रवानी।
छमक भी है गायब सभी पायलों से,
पड़ी आज सूनी सी सुर की गली है॥
दिल में कहीं टीस छोड़ गई...
अगन ने जलाया मेरा आशियाना,
ReplyDeleteग़ाफ़िल भी है आज कैसा बेगाना।
हरी वादियों का हुआ रंग खूनी,
चिता आल की सबसे पहले जली है॥
bahut badhiyaa
छमक भी है गायब सभी पायलों से,
ReplyDeleteपड़ी आज सूनी सी सुर की गली है॥
अगन ने जलाया मेरा आशियाना,
ग़ाफ़िल भी है आज कैसा बेगाना।
बहुत सुन्दर ||
बधाई |
हुई किस क़दर रात चोरी यहाँ पे,
ReplyDeleteबता चाँद सबकी है ख़ूबी कहाँ पे।
जो गुल ख़ूबसूरत तो ख़ुश्बू जुदा है,
जो तोड़ी गयी है वो नाज़ुक कली है॥
क्या बात...क्या बात....
अगन ने जलाया मेरा आशियाना,
ReplyDeleteग़ाफ़िल भी है आज कैसा बेगाना।
हरी वादियों का हुआ रंग खूनी,
चिता आल की सबसे पहले जली है॥
Excellent creation !
Very appealing lines and quite meaningful as well. Loving it .
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हुई किस क़दर रात चोरी यहाँ पे,
ReplyDeleteबता चाँद सबकी है ख़ूबी कहाँ पे।
जो गुल ख़ूबसूरत तो ख़ुश्बू जुदा है,
जो तोड़ी गयी है वो नाज़ुक कली है॥
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बहुत ही नाज़ुक अशआरों से सँवारी है आपने यह रचना!
अगन ने जलाया मेरा आशियाना,
ReplyDeleteग़ाफ़िल भी है आज कैसा बेगाना।
हरी वादियों का हुआ रंग खूनी,
चिता आल की सबसे पहले जली है॥
Bemisal... Bahut hi sunder
गया सूख बेवक़्त आँखों का पानी,
ReplyDeleteनहीं गीत में भी है कोई रवानी।
छमक भी है गायब सभी पायलों से,
पड़ी आज सूनी सी सुर की गली है॥
bahut sundar bhavaabhivyakti
तेरे सिम्त सजती हैं बज़्मे-बहाराँ,
ReplyDeleteमेरे सू तो मेरी ही शैदादिली है।
सर, कैसी सुन्दर रवानगी है....
आपको पढ़ना आनंद देता है.... शिक्षा भी...
सादर...
kya kahun har ek line ko baar baar padhne ko man karta hai.humesha ki tarah behtreen ghazal.
ReplyDeleteगया सूख बेवक़्त आँखों का पानी,
ReplyDeleteनहीं गीत में भी है कोई रवानी।
छमक भी है गायब सभी पायलों से,
पड़ी आज सूनी सी सुर की गली है॥
दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बड़ी बहर [122 x 8] की शानदार ग़ज़ल| बहुत खूब| जिस तरह छोटी बहर में ग़ज़ल कहना कठिन होता है, उसी तरह बड़ी बहर का निर्वाह करने में भी काफ़ी पसीना बहाना पड़ता है| नमन|
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteरचा है आप ने
क्या कहने ||
वाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट....
ReplyDeletebhaut hi sundar panktiya...
ReplyDeletebaht khoob.
ReplyDeleteक्या बात है!...वाह
ReplyDeleteहुई किस क़दर रात चोरी यहाँ पे,
Deleteबता चाँद सबकी है ख़ूबी कहाँ पे।
जो गुल ख़ूबसूरत तो ख़ुश्बू जुदा है,
जो तोड़ी गयी है वो नाज़ुक कली है॥
बहुत ही बेहतरीन अशआर हैं ! हर शब्द दिल पर असर करता है ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
बहुत सुन्दर रचना है.
ReplyDeleteवो ताबानी सूरज की बदली में गुम है,
ReplyDeleteचमक चाँदनी की भी जुगुनू से कम है।
हैं दरिया की लहरें सराबी-शिगूफा,
सज़र भी हैं मुफ़लिस, हवा बद चली है॥
गाफिल जी, कलेजा चीर कर लिखते हैं.सीधे हमारा भी कलेजा चीर देते हैं,वाह !!!
बेहद खूबसूरत..बेहतरीन
ReplyDeleteगया सूख बेवक़्त आँखों का पानी,
ReplyDeleteनहीं गीत में भी है कोई रवानी।
छमक भी है गायब सभी पायलों से,
पड़ी आज सूनी सी सुर की गली है॥
...sach vqkt ke saath sabkuch badal jaane mein der kahan lagti hain..
..bahut sundar chintansheel prastuti..
हुई किस क़दर रात चोरी यहाँ पे,
ReplyDeleteबता चाँद सबकी है ख़ूबी कहाँ पे।
जो गुल ख़ूबसूरत तो ख़ुश्बू जुदा है,
जो तोड़ी गयी है वो नाज़ुक कली है॥
बेहतरीन सुन्दर रचना है