यार तेरी वो मुआसात यहाँ हो के न हो।
फिर सुहानी वो हसीं रात यहाँ हो के न हो॥
ऐसी ख़्वाहिश के रहे चाँद भी इन क़दमो में,
आबे- हैवाँ की वो बरसात यहाँ हो के न हो।
अंदलीबों यूँ ख़िज़ाओं में रहो गुम- सुम मत,
फिर बहारों की करामात यहाँ हो के न हो।
मुझ सा नादाँ भी ग़ज़ब ख़ुद को कहे अफलातूँ,
एक ‘ग़ाफ़िल’ से मुलाक़ात यहाँ हो के न हो॥
(मुआसात= मिह्रबानी, आबे- हैवाँ= अमृत)
मुझ सा नादाँ भी यहाँ अफलातूँ से ना कमतर,
ReplyDeleteएक 'ग़ाफ़िल' से मुलाक़ात याँ पे हो के न हो॥
बेहद शानदार लाजवाब गज़ल ।
लोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
ReplyDeleteफिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो।
बेहतरीन ग़ज़ल
ऐसी ख़्वाहिश के रहे चाँद भी इन क़दमो में,
ReplyDeleteआबे- हैवाँ की फिर बरसात याँ पे हो के न हो।
अति सुन्दर , सराहनीय .
"ऐसी ख़्वाहिश के रहे चाँद भी इन क़दमो में...."
ReplyDeleteवाह! बड़ा उम्दा खयालात पेश किये हैं आपने....
बेहतरीन...
अति सुन्दर..........बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeletesundar gazal...
ReplyDeleteलोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
ReplyDeleteफिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो
खूबसूरत गजल. आभार.
सादर,
डोरोथी.
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ..आभार ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल है .. नए अंदाज़ के शेर ...
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
ReplyDeletebahut sundar panktiyan sir....
ReplyDeleteभाई गाफिल जी
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार ||
एक स्थान पर खिले-कमल के
चक्कर में कीचड़ में फंसा ||
एक कदम पर बड़ी फिसलन तो
दूसरे कदम पर जकड़न है,
इतनी जोर से दबोचे गए कि ---
जय बाबा भोले नाथ |
अंदलीबों = ??
बहुत बहुत बधाई ||
वाह ,बहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने ग़ाफिल जी!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
ReplyDeleteलोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
ReplyDeleteफिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो//
बहुत खूब
behtreen
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल ........
ReplyDeleteआपकी लिखी गजलों की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ।
ReplyDeleteलोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
ReplyDeleteफिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो।
बेहतरीन गज़ल.
अच्छी प्रस्तुति...बधाई...।
ReplyDeleteमानी
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन गजल...
लोग अश्क़ों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
ReplyDeleteफिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो।
बहुत खूब!
बहुत सुन्दर सार्थक रचना.
ReplyDeletebahut sundar panktiyan
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल है गाफिल जी ! यह अच्छा है मुश्किल शब्दों के अर्थ आप साथ में लिख देते हैं, समझाने में आसानी हो जाती है !
ReplyDeleteगजल समर्पित हो गयी
ReplyDeleteजब रविकर के नाम
हिचकोले जरूर खिलायेगा
देखिये क्या लिखता है
लिखा हुआ उसका
सामने तो आयेगा
गाफिल की शानदार गजल
पर एक और कसीदा पक्का
वो आ आकर जड़ जायेगा ।
लोग अश्कों को भी आँखों में छुपा लेते हैं,
ReplyDeleteफिर तो गौहर का इख़्राजात याँ पे हो के न हो।
शानदार ग़ज़ल है !!
बहुत खूब, गाफिल जी।
ग़ाफ़िल दानिशमन्द है, शायर है उस्ताद।
ReplyDeleteचेला हमें बनाइए, करते हैं फरियाद।।
अपने हुजूर में कुछ कहने की इजाजत दे दो,
ReplyDeleteमैंने कब कोई शायरी का खिताब माँगा था,,,,,,,