कैसे बोलूँ के कैसी बातें हैं
किस सिफ़त की ये मूलाक़ातें हैं
होके मेरी गली से जाते हैं जब
आपके पाँव डगमगाते हैं
आपसे आशिक़ी की बातें हों क्या
बातों बातों में जो बनाते हैं
आके चुभता हूँ ख़ार सा मैं और
आप जाकर भी गुल खिलाते हैं
ये भी है तर्ज़े क़ातिली ग़ाफ़िल!
आप जाते भी मुस्कुराते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
चंद्रभूषण मिश्र जी बहुत सुन्दर शेर आप के एक से बढ़ कर एक -निम्न पंक्ति बड़ी प्यारी क्या अदा है उनकी जा रहे और ...
ReplyDeleteहै ये भी तर्ज़े-क़ातिली 'ग़ाफ़िल',
जा रहे हैं वो मुस्कुराते हैं॥
स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
खूबसूरत गजल. आभार. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
bhaut hi sundar gazal....
ReplyDeleteमिश्र जी
ReplyDeleteखूबसूरत गजल
वाह बेहतरीन !!!!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं….!
जय हिंद जय भारत
bhaut hi khubsurat gazal.... jai hind...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल!
ReplyDeleteआजादी की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
जो दिये बुझ चुके थे यादों के,
ReplyDeleteराहे-उल्फ़त मेँ जगमगाते हैं।
Bahut Sunder Gazal....
हम तो आ करके ख़ार से चुभते,
ReplyDeleteवो तो जाकर भी गुल खिलाते हैं।
waah
हम तो आ करके ख़ार से चुभते,
ReplyDeleteवो तो जाकर भी गुल खिलाते हैं।
वाह सर....
अत्यंत सुन्दर ग़ज़ल...
राष्ट्र पर्व की हार्दिक बधाइयां...
स्वतंत्रता दिवस 2011 की आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteहम तो आ करके ख़ार से चुभते,
ReplyDeleteवो तो जाकर भी गुल खिलाते हैं।
बहुत खूब ...
सुन्दर अभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteमेरे जानिब से जब भी जाते हैं।
ReplyDeleteपाँव उनके भी डगमगाते हैं॥गाफ़िल साहब जब शैर कहतें हैं ,ला -ज़वाब कहतें हैं ,कहतें हैं के "गाफ़िल" का है अंदाज़े बयाँ और ,हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छी .....
कृपया यहाँ भी कृतार्थ करें .
Tuesday, August 16, 2011
उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
बहुत सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल!
ReplyDeleteआजादी की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
अश्क़ हैं के ठहर नहीं सकते,
ReplyDeleteचश्म बे-वक़्त डबडबाते हैं।हर अशआर का अपना असर ,ग़ज़ल ये पढ़े हर बशर .
Tuesday, August 16, 2011
उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सोमवार, १५ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
त्रि -मूर्ती से तीन सवाल .
हम तो आ करके ख़ार से चुभते,
ReplyDeleteवो तो जाकर भी गुल खिलाते हैं।|
खूबसूरत गज़ल ||
बहुत ही खूबसूरत गजल।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteअश्क़ हैं के ठहर नहीं सकते,
ReplyDeleteचश्म बे-वक़्त डबडबाते हैं।
वाह!
sundar abhivyakti.....
ReplyDeleteसुन्दर अशआरों से सजी हुई बेहतरीन ग़ज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteबेहतरीन नज़्म के लिए शुक्रिया..
ReplyDeleteजो दिये बुझ चुके थे यादों के,
ReplyDeleteराहे-उल्फ़त में जगमगाते हैं।
अश्क़ हैं के ठहर नहीं सकते,
चश्म बे-वक़्त डबडबाते हैं।
वाह ...बहुत ही बढिया।
इनती पुरानी गज़ल का लिंक दिया आपने..पुराना दर्द उभरा लगता है:)
ReplyDelete..वैसे जो भी हो गज़ल बेहतरीन है।