आज ख़ुश हूँ बहुत, उनका ख़त आ गया,
सूनी बगिया में फिर से बहार आ गयी।
थी उमस से भरी, चिपचिपी दुपहरी,
भीगे सावन सी ठंढी फुहार आ गयी॥
मैं तड़पता रहा धूप में रेत पर,
वो मचलते रहे लहलहे खेत पर,
यक-ब-यक जाने कैसा है जादू हुआ,
इस तपन में बसन्ती बयार आ गयी।
लोग समझें न इस ख़त के मजमून को,
मैं समझता हूँ स्याही की हर बून को,
धूल से कैस की फिर इबारत उड़ी,
यार के वास्ते बन पुकार आ गयी।
किस क़दर तू है 'ग़ाफ़िल' अनाड़ी निरा,
तीर तरकश से जाकर कहाँ पे गिरा,
चाक कर डाला जो उनका नाज़ुक ज़िग़र,
तेरे लहजे मे कैसे वो धार आ गयी॥
-'ग़ाफ़िल'
सूनी बगिया में फिर से बहार आ गयी।
थी उमस से भरी, चिपचिपी दुपहरी,
भीगे सावन सी ठंढी फुहार आ गयी॥
मैं तड़पता रहा धूप में रेत पर,
वो मचलते रहे लहलहे खेत पर,
यक-ब-यक जाने कैसा है जादू हुआ,
इस तपन में बसन्ती बयार आ गयी।
लोग समझें न इस ख़त के मजमून को,
मैं समझता हूँ स्याही की हर बून को,
धूल से कैस की फिर इबारत उड़ी,
यार के वास्ते बन पुकार आ गयी।
किस क़दर तू है 'ग़ाफ़िल' अनाड़ी निरा,
तीर तरकश से जाकर कहाँ पे गिरा,
चाक कर डाला जो उनका नाज़ुक ज़िग़र,
तेरे लहजे मे कैसे वो धार आ गयी॥
-'ग़ाफ़िल'
Badhiya janab..khushi kayam rahe!!!
ReplyDeleteलोग समझें न इस ख़त के मजमून को,
ReplyDeleteमैं समझता हूँ स्याही की हर बून को,
धूल से कैस की फिर इबारत उड़ी,
यार के वास्ते बन पुकार आ गयी।......
शानदार पोस्ट....धन्यवाद :)
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई मिश्रा जी
ReplyDeleteकिस क़दर तू है 'ग़ाफ़िल' अनाड़ी निरा,
ReplyDeleteतीर तरकश से जाकर कहाँ पे गिरा,
चाक कर डाला जो उनका नाज़ुक ज़िग़र,
तेरे लहजे मे कैसे वो धार आ गयी॥
shandar ,,,teer lag hi gay hai to lage rahne dijiye,,,
सुंदर भाव संजोये पंक्तियाँ...
ReplyDeleteकिस क़दर तू है 'ग़ाफ़िल' अनाड़ी निरा,
ReplyDeleteतीर तरकश से जाकर कहाँ पे गिरा,
चाक कर डाला जो उनका नाज़ुक ज़िग़र,
तेरे लहजे मे कैसे वो धार आ गयी॥
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बहुत बढ़िया गीत रचा है आपने!
और यह ग़ाफिल की पहचानवाला अन्तिम छंद तो बहुत सुन्दर रहा!
लोग समझें न इस ख़त के मजमून को,
ReplyDeleteमैं समझता हूँ स्याही की हर बून को,
धूल से कैस की फिर इबारत उड़ी,
यार के वास्ते बन पुकार आ गयी।...waah, bahut hi badhiyaa
aapki ghazal padhne me ek alag hi maja hai.bahut achchi ghazal last ki lines to bahut khoobsurat hain.
ReplyDeleteमैं तड़पता रहा धूप में रेत पर,
ReplyDeleteवो मचलते रहे लहलहे खेत पर,
यक-ब-यक जाने कैसा है जादू हुआ,
इस तपन में बसन्ती बयार आ गयी।
bahut acchi rachana..
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
लोग समझें न इस ख़त के मजमून को,
ReplyDeleteमैं समझता हूँ स्याही की हर बून को,
धूल से कैस की फिर इबारत उड़ी,
यार के वास्ते बन पुकार आ गयी।..........bahut khoob gafil ji...
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteलोग समझें न इस ख़त के मजमून को,
ReplyDeleteमैं समझता हूँ स्याही की हर बून को,
धूल से कैस की फिर इबारत उड़ी,
यार के वास्ते बन पुकार आ गयी।....बेहतरीन
धूल से कैस की फिर इबारत उड़ी,
ReplyDeleteयार के वास्ते बन पुकार आ गयी।.
मित्रता दिवस की शुभकामनाये .
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
ReplyDeleteएस .एन. शुक्ल
बहुत ही खुबसूरत....
ReplyDeleteवाह! बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteसादर..
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteaapke jzbat khoob ubhar ke aaye hai .
ReplyDeleteshandar post ke liye bhut bhut bdhai .
आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी
ReplyDeleteसादर नमस्कार !
आपके यहां आ'कर सुख़न का असली स्वाद मिल जाता है :)
थी उमस से भरी, चिपचिपी दुपहरी,
भीगे सावन-सी ठंडी फुहार आ गयी॥
क्या अंदाज़े-बयां है !
वाह ! वाऽह ! व्वाऽऽऽह… !
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
sunder abhivykti...
ReplyDeleteलोग समझें न इस ख़त के मजमून को,
ReplyDeleteमैं समझता हूँ स्याही की हर बून को,
kya baat hai mishra ji ....bahut khub shubhkamnayen ji /
किस क़दर तू है 'ग़ाफ़िल' अनाड़ी निरा,
ReplyDeleteतीर तरकश से जाकर कहाँ पे गिरा,
चाक कर डाला जो उनका नाज़ुक ज़िग़र,
तेरे लहजे मे कैसे वो धार आ गयी॥
बहुत शानदार पंक्तियाँ हैं गाफिल जी ! पूरी की पूरी रचना की अनुपम है ! बधाई !
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई
ReplyDeleteखूबसूरत भावाभिव्यक्ति ........
ReplyDeleteहर मुक्तक गज़ब का .....मनमोहक - चित्ताकर्षक
ReplyDeletebahut badiyaa panktiyon ke saath likhi sunder rachanaa.badhaai aapko.
ReplyDelete"ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
खूबसूरत रचना .. अच्छी भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteगाफिल जी, आपका जवाब नहीं।
ReplyDelete------
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
बहुत खूब गाफिल जी ||
ReplyDeleteबधाई ||
प्रभावशाली हैं आपकी रचनाएं ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !