(कई दिनों से ब्लॉग जगत 'मौन' पर कुछ ज्यादा ही मुखर हो गया है। सो सोचा कि मैं यदि मौन रहा तो इसे मेरी धृष्टता न मान ली जाय अतः लिख डाली मौन-महिमा पर कुछ लाइनें फटाफट। मौका-बेमौका अग़र आप इन्हें अमल में ले आएं तो शर्तिया बल्ले-बल्ले)
पेश है सूरते-हाल पर क़ाबिले-आजमाइश नुस्ख़ा 'मौन'
भाई यहि संसार महं, मौन मूल है जानि!
अवगुन जादा बोलना, मौन गुनन करि खानि॥
मौन गुनन करि खानि, सहज अग्यान छिपावै;
सन्मुख हों सुरसती, मौन तिनहुंक भरमावै।
'ग़ाफ़िल' कहैं अगर कटुभाषिनि मिलै लुगाई,
मौन बरत को साधि मस्त ह्वै रहिये भाई॥
एक बात और-
ग़ाफ़िल हूँ मेरी बात हँसी में उड़ाइए, ख़ुद पे यक़ीन हो तो मुस्कुराइए ज़नाब!
-ग़ाफ़िल
सुखी रहने का मूलमंत्र
ReplyDelete'ग़ाफ़िल' कहैं अगर कटुभाषिनि मिलै लुगाई,
मौन बरत को साधि मस्त ह्वै रहिये भाई।
सही है मौनमोहन सिंग आपके पहले से शागिर्द नजर आते हैं
ReplyDeletevery nice...
ReplyDeleteहर बार औरत पर ही क्यों कटाक्ष किये जाते है ........
ReplyDeleteवैसे दोहे लिखे कमाल है आपने भाई जी
anu
आपने तो मौन की महिमा बखान कर डाली पर मुझे कई बार लगता है कि क्यों बोल डाला?
ReplyDeleteमुआफ़ी चाहूँगा पर यह बात हर सेक्स पर लागू होती है अपने तरीके से बैठा लें। अब मैं पुरुष हूँ तो ऐसे लिख दिया। महिलाएं उल्टा समझ लें पुरुषों के लिए। वैसे मौन है गुण की खान। शुक्रिया अन्जू जी!
ReplyDeleteमौन तो होता ही गुणो की खान है।
ReplyDeleteमौन रहकर भी जीवन का सत्य कह दिया आपने...वाह!!
ReplyDeletevery nice sir,
ReplyDeleteतभी तो कहा गया है गाफ़िल साहब -"एक चुप सौ को हरावे "और अंग्रेजी में -"सायलेंस इज गोल्डन ".एक व्यक्ति चुप हो जाए तो बहस चुक जाती है .
ReplyDeleteविनोबा भावे का मौन व्रत मशहूर है और पूर्व भाषा ग्यानी नरसिम्हा राव जी तो कहलाते ही मौनी बाबा थे .
'ग़ाफ़िल' कहैं अगर कटुभाषिनि मिलै लुगाई,
मौन बरत को साधि मस्त ह्वै रहिये भाई॥
मौन की महिमा अपरम- पार -मौन मेडिटेशन का द्वार .मौन से ऊर्जा संग्रहित होती है .एक सज्जन थे जब बीबी से तंग आजाते थे कहते देखो डीयर हम अपनी सी पर आगये तो तुम्हारी चुटिया पकडके .......पत्नी सिर्फ डीयर शब्द ग्रहण करतीं थीं ,मज़े से फल छील कर खाती रहतीं थीं .शुक्रिया गाफ़िल साहब कृपया यहाँ भी बिराजें -
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Tuesday, August 9, 2011
माहवारी से सम्बंधित आम समस्याएं और समाधान ....
...क्या भारतीयों तक पहुंच सकेगी जैव शव-दाह की यह नवीन चेतना ?
Posted by veerubhai on Monday, August 8
Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Bio Cremation, जैव शवदाह, पर्यावरण चेतना, बायो-क्रेमेशन ttp://sb.samwaad.com/
उत्तम सीख बड़े भईया....
ReplyDeleteसादर...
hahaha bahut manoranjan kiya Gafil ji.bahut dhanyavaad.
ReplyDeleteयकीं पूरा है इसलिए मुस्करा रहे हैं.
ReplyDeleteumdaa....
ReplyDeleteमौन गुनन करि खानि, सहज अग्यान छिपावै;
ReplyDeleteसन्मुख हों सुरसती, मौन तिनहुंक भरमावै।
Bahut Umda...
shandaar..badhayee
ReplyDeletemaun hi to hoon
ReplyDeleteबात तो सही है पर यह मौन कहीं तूफान से पहले का तो नहीं ..........
ReplyDeleteEk chup bhari pad jata hai.....
ReplyDeleteUmdarachna....
Jai hind jai bharat.....
;acha laga apke blog par aakar.Ek chup bhari pad jata hai.....
Umdarachna....
Jai hind jai bharat.....
;acha laga apke blog par aakar.
मौन और वाणी समयानुकूल ही ठीक है !
ReplyDeletebahut khoob! Aabhaar !
ReplyDeleteआदरणीय ग़ाफ़िल जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
अवगुन जादा बोलना, मौन गुनन करि खानि॥
क्या बात है … अच्छी कुंडली कही आपने … बधाई !
रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार
इस पर प्रतिक्रिया केवल मौन रह कर ही की जा सकती hai
ReplyDeleteक्या प्रतिक्रिया दूँ...आज में मौन हूँ...
ReplyDeleteलाजवाब....
ReplyDeleteआप सभी शुभचिन्तकों का बहुत-बहुत आभार, मैं देख रहा हूँ कि इस मौन महिमा पर (प्रतिफल स्वरूप) बहुत लोग मौन साध गये या साध रहे हैं सो लगता है कि अब बोलने पर कुछ लिखना पड़ेगा क्योंकि वाज़िब देश और काल में न बोलना भी कितना घातक और पाप का कारण होता है बात को सभी सहज ही जानते और मानते हैं। और क्या लिखूँ अब बोलने पर लिखूँगा
ReplyDeletemishra ji vah kya bat hai ! aaj to satsayi yad aa gayi .....dekhan men chhotan lagen ghav ...../dhanyavad ji
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच
जीवन का सत्य कह दिया आपने...वाह !
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteankarneey abhivyakti.
ReplyDeletebahut achha likha gafil ji . apka bahut bahut abhar .
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