Friday, August 05, 2011

आग लगायी लोगों ने

मेरी झिलमिल सी रातों में आग लगाई लोगों ने
मेरी बर्बादी की कैसे हँसी उड़ाई लोगों ने

मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना छूट गया
अब तक उससे खेल रहा था नज़र लगाई लोगों ने

अपनी अपनी किस्मत है ये बाग़ संवारा हमने ही
पतझड़ मेरे हिस्से आया मौज मनाई लोगों ने

ग़ाफ़िल उलझा है गुलाब के काँटो भरे छलावे में
दामन उसका चिन्दी चिन्दी ख़ुश्बू पाई लोगों ने

-‘ग़ाफ़िल’

27 comments:

  1. गज़ब कर दिया…………शानदार भावाव्यक्ति।

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  2. क्या बात है!...

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  3. मेरी बर्बादी की कैसे हंसी उडाई लोगों ने..

    वाह.. क्या बात है।
    बहुत बढिया

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  4. ग़ज़ल के सभी अशआर बहुत पसंद आये!
    मैं तो इसको बेहतरीन जानदार और शानदार ग़ज़ल ही कहूँगा!

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  5. ग़फ़िल‘ उलझा है गुलाब के काँटों भरे छलावे में,
    दामन उसका चिन्दी-चिन्दी, ख़ुश्बू पायी लोगों ने।।

    बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने...

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  6. पहली बार

    एक बार में बहता हुआ किनारे जा लगा ||

    हमेशा ,

    इक दो हिचकोले खा ही जाता था --

    शब्दों के मायने तलाशने में |


    बधाई ||

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  7. बहुत खूब ....आपने तो आग ही लगा दी ......आभार

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार

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  9. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  10. ग़फ़िल‘ उलझा है गुलाब के काँटों भरे छलावे में,
    दामन उसका चिन्दी-चिन्दी, ख़ुश्बू पायी लोगों ने।।
    Bahut badhiya.. atiuttam bhawabhyakti..

    http://sureshilpi-ranjan.blogspot.com

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  11. मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना, टूट गया,

    अबतक उससे खेल रहा था, नज़र लगायी लोगों ने।

    वाह! सभी अशआर बढ़िया है...
    सादर...

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  12. अपनी-अपनी किस्मत है, ये बाग सँवारा हमने ही,
    पतझड़ मेरे हिस्से आया, मौज़ मनायी लोगों ने।
    ‘ग़फ़िल‘ उलझा है गुलाब के काँटों भरे छलावे में,
    दामन उसका चिन्दी-चिन्दी, ख़ुश्बू पायी लोगों ने।।
    गाफ़िल जी ऐसे शे’रों पर तो दिल क़ुरबान ...!

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  13. मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना, टूट गया,

    अबतक उससे खेल रहा था, नज़र लगायी लोगों ने।

    वाह ..... उम्दा रचना

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  14. मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना, टूट गया,

    अबतक उससे खेल रहा था, नज़र लगायी लोगों ने।

    umda ghazal....dhanyawaad

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  15. सुंदर गज़ल आदरणीय गाफ़िल जी बधाई

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  16. मत्ले से मक़्ते तक सुंदर ग़ज़ल

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  17. .कृपया यहाँ भी कृतार्थ करें .http://veerubhai1947.blogspot.com/‘ग़फ़िल‘ उलझा है गुलाब के काँटों भरे छलावे में,

    दामन उसका चिन्दी-चिन्दी, ख़ुश्बू पायी लोगों ने।।क्या खूब कहा है गाफिल साहब याद आ गईं गोपाल सिंह नेपाली की पंक्तियाँ -मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा ...तमाम अशआर काबिले दाद .बधाई .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    -

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  18. gajab kr diya gafil ji.....bhut khoob.

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  19. अपनी-अपनी किस्मत है, ये बाग सँवारा हमने ही,

    पतझड़ मेरे हिस्से आया, मौज़ मनायी लोगों ने...

    ----

    गाफिल जी , अक्सर ऐसा ही होता है ! जो असली हक़दार होते हैं , वे वंचित ही रह जाते है बसंत को भोगने से !

    .

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  20. मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना, टूट गया,
    अबतक उससे खेल रहा था, नज़र लगायी लोगों ने।

    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी .....! हार्दिक शुभकामनायें !

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  21. आपने सुंदर गजल लिखी है ,
    लुत्फ लिया हम लोगों ने ।

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  22. बहुत भावपूर्ण रचना के लिए बधाई |
    आशा

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  23. अपनी-अपनी किस्मत है, ये बाग सँवारा हमने ही,

    पतझड़ मेरे हिस्से आया, मौज़ मनायी लोगों ने।

    jindagi ki bahut badi sacchai bayan ki hai aapne..aapki behad pasand aayi ghazlon me se ek..shubhkamnaon ke sath

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  24. अपनी-अपनी किस्मत है, ये बाग सँवारा हमने ही,

    पतझड़ मेरे हिस्से आया, मौज़ मनायी लोगों ने।
    गम न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी .शुक्रिया गाफिल साहब .तशरीफ़ लाने का .

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  25. ऐसे ही तो फैलती है गुलाब की खुशबू - लोगों में.....
    :-)

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