मेरी झिलमिल सी रातों में आग लगाई लोगों ने
मेरी बर्बादी की कैसे हँसी उड़ाई लोगों ने
मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना छूट गया
अब तक उससे खेल रहा था नज़र लगाई लोगों ने
अपनी अपनी किस्मत है ये बाग़ संवारा हमने ही
पतझड़ मेरे हिस्से आया मौज मनाई लोगों ने
ग़ाफ़िल उलझा है गुलाब के काँटो भरे छलावे में
दामन उसका चिन्दी चिन्दी ख़ुश्बू पाई लोगों ने
-‘ग़ाफ़िल’
गज़ब कर दिया…………शानदार भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteक्या बात है!...
ReplyDeleteमेरी बर्बादी की कैसे हंसी उडाई लोगों ने..
ReplyDeleteवाह.. क्या बात है।
बहुत बढिया
ग़ज़ल के सभी अशआर बहुत पसंद आये!
ReplyDeleteमैं तो इसको बेहतरीन जानदार और शानदार ग़ज़ल ही कहूँगा!
ग़फ़िल‘ उलझा है गुलाब के काँटों भरे छलावे में,
ReplyDeleteदामन उसका चिन्दी-चिन्दी, ख़ुश्बू पायी लोगों ने।।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने...
पहली बार
ReplyDeleteएक बार में बहता हुआ किनारे जा लगा ||
हमेशा ,
इक दो हिचकोले खा ही जाता था --
शब्दों के मायने तलाशने में |
बधाई ||
बहुत खूब ....आपने तो आग ही लगा दी ......आभार
ReplyDeleteसुन्दर.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
ग़फ़िल‘ उलझा है गुलाब के काँटों भरे छलावे में,
ReplyDeleteदामन उसका चिन्दी-चिन्दी, ख़ुश्बू पायी लोगों ने।।
Bahut badhiya.. atiuttam bhawabhyakti..
http://sureshilpi-ranjan.blogspot.com
मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना, टूट गया,
ReplyDeleteअबतक उससे खेल रहा था, नज़र लगायी लोगों ने।
वाह! सभी अशआर बढ़िया है...
सादर...
अपनी-अपनी किस्मत है, ये बाग सँवारा हमने ही,
ReplyDeleteपतझड़ मेरे हिस्से आया, मौज़ मनायी लोगों ने।
‘ग़फ़िल‘ उलझा है गुलाब के काँटों भरे छलावे में,
दामन उसका चिन्दी-चिन्दी, ख़ुश्बू पायी लोगों ने।।
गाफ़िल जी ऐसे शे’रों पर तो दिल क़ुरबान ...!
bahut khoob guru...........
ReplyDeleteमेरे बचपन का साथी था एक खिलौना, टूट गया,
ReplyDeleteअबतक उससे खेल रहा था, नज़र लगायी लोगों ने।
वाह ..... उम्दा रचना
मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना, टूट गया,
ReplyDeleteअबतक उससे खेल रहा था, नज़र लगायी लोगों ने।
umda ghazal....dhanyawaad
सुंदर गज़ल आदरणीय गाफ़िल जी बधाई
ReplyDeleteमत्ले से मक़्ते तक सुंदर ग़ज़ल
ReplyDelete.कृपया यहाँ भी कृतार्थ करें .http://veerubhai1947.blogspot.com/‘ग़फ़िल‘ उलझा है गुलाब के काँटों भरे छलावे में,
ReplyDeleteदामन उसका चिन्दी-चिन्दी, ख़ुश्बू पायी लोगों ने।।क्या खूब कहा है गाफिल साहब याद आ गईं गोपाल सिंह नेपाली की पंक्तियाँ -मेरी दुल्हन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा ...तमाम अशआर काबिले दाद .बधाई .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
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gajab kr diya gafil ji.....bhut khoob.
ReplyDeleteअपनी-अपनी किस्मत है, ये बाग सँवारा हमने ही,
ReplyDeleteपतझड़ मेरे हिस्से आया, मौज़ मनायी लोगों ने...
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गाफिल जी , अक्सर ऐसा ही होता है ! जो असली हक़दार होते हैं , वे वंचित ही रह जाते है बसंत को भोगने से !
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मेरे बचपन का साथी था एक खिलौना, टूट गया,
ReplyDeleteअबतक उससे खेल रहा था, नज़र लगायी लोगों ने।
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी .....! हार्दिक शुभकामनायें !
आपने सुंदर गजल लिखी है ,
ReplyDeleteलुत्फ लिया हम लोगों ने ।
बहुत भावपूर्ण रचना के लिए बधाई |
ReplyDeleteआशा
अपनी-अपनी किस्मत है, ये बाग सँवारा हमने ही,
ReplyDeleteपतझड़ मेरे हिस्से आया, मौज़ मनायी लोगों ने।
jindagi ki bahut badi sacchai bayan ki hai aapne..aapki behad pasand aayi ghazlon me se ek..shubhkamnaon ke sath
अपनी-अपनी किस्मत है, ये बाग सँवारा हमने ही,
ReplyDeleteपतझड़ मेरे हिस्से आया, मौज़ मनायी लोगों ने।
गम न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी .शुक्रिया गाफिल साहब .तशरीफ़ लाने का .
ऐसे ही तो फैलती है गुलाब की खुशबू - लोगों में.....
ReplyDelete:-)