Monday, August 08, 2011

शोले को नहाते देखा

हाय मैंने जो कभी उसको लजाते देखा
खंज़रे चश्म को हाथों से छुपाते देखा

डसके बलखाती हुई कौन गयी नागन इक
होश हँसते हुए इस दिल को गँवाते देखा

ग़ुस्लख़ाने के दरीचों से लपट का भभका
जाके जो देखा तो शोले को नहाते देखा

लोग मानेंगे नहीं फिर भी बता देता हूँ
चाँद को मैंने मेरी नींद चुराते देखा

तेरी ही मिस्ल हुई जा रही क़ुद्रत ग़ाफ़िल
बिजलियाँ ज़ुल्फ़ों को ही दिल पे गिराते देखा

-‘ग़ाफ़िल’

21 comments:

  1. डसके बलखाती हुई कौन गयी नागन इक,
    होश हँसते हुए इस दिल को गँवाते देखा।

    बहुत खूब

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  2. तेरा क्या ऐ जुनूने- इश्क़! कुछ हमारी सुन,
    मिस्ले- अख़्गर हमीं ने ख़ुद को जलाते देखा।


    अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई

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  3. तेरा क्या ऐ जुनूने- इश्क़! कुछ हमारी सुन,
    मिस्ले- अख़्गर हमीं ने ख़ुद को जलाते देखा।...बहुत खूब गाफिल जी.......

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  4. वाह बेहतरीन !!!!
    बहुत खूब गाफिल जी...

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  5. तेरी तरह ही हुई जा रही कुदरत ग़ाफ़िल,
    दिल पे सौ बिजलियाँ जुल्फ़ों को गिराते देखा॥
    Bahut khoob..wah!!!!!

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  6. अच्छा लगा इसे ग़ज़ल को पढ़ना।

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  7. नज़र से मिल के इक नज़र को लजाते देखा।
    मखमली दस्त से खंजर को छुपाते देखा॥

    डसके बलखाती हुई कौन गयी नागन इक,
    होश हँसते हुए इस दिल को गँवाते देखा।

    बहुत खूब गाफ़िल जी..

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  8. touché! unexampled, truely awesome ghazal.....real magnum opus!...thanxtouché! unexampled, truely awesome ghazal.....real magnum opus!...thanx

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  9. निवेदन है कि मेरी भी और बेसुरम जैसे ब्लॉग के लिंक,जिनपर आप फिलहाल कुछ पोस्ट नहीं कर रहे हैं,हटा दें।

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  10. लपट सी उठ रही थी उसके ग़ुस्लख़ाने से,
    जो गया पास तो शोले को नहाते देखा।...aap ki ek aur behtarin ghazal,,dil mast mast ho gaya

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  11. लपट सी उठ रही थी उसके ग़ुस्लख़ाने से,
    जो गया पास तो शोले को नहाते देखा।,,,aap ki ek aur dil ko choo lene wali ghazal...kamal ka likha hai,,,badhayee

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  12. नज़र से मिल के इक नज़र को लजाते देखा।
    मखमली दस्त से खंजर को छुपाते देखा॥

    Awesome !

    .

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  13. लपट सी उठ रही थी उसके ग़ुस्लख़ाने से,
    जो गया पास तो शोले को नहाते देखा।|

    भैया जी !!
    नहाने के लिए कौन सी सामग्री
    इस्तेमाल की जा रही है ??

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  14. उफ !

    अरे आप तो
    बिल्कुल भी
    नहीं शर्माते हैं
    शोले को
    नहाते हुऎ
    देखने के लिये
    कैसे चले जाते हैं?

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    1. शुशील भाई अनपेक्षित जगह पर उठ रही आग की लपटों को देख कर कोई भी जिम्मेदार और सभ्य व्यक्ति वहां जाकर देखना चाहेगा कि माज़रा क्या है? कहीं कोई बुरा हादिसा तो नहीं हो गया? इसमें शर्म जैसी कोई बात ही नहीं है...फिर भी आपकी टिप्पणी बेशक़ीमती है...

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  15. ग़ज़ल के सभी अशआर बहुत उम्दा हैं!

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  16. दीवाने-आलम दिले-आजार न होते..,
    दीदा महरूम हैं सरकार वर्ना दीदार न होते.....

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  17. लपट सी उठ रही थी उसके ग़ुस्लख़ाने से,
    जो गया पास तो शोले को नहाते देखा।
    नज़र से मिल के इक नज़र को लजाते देखा।
    मखमली दस्त से खंजर को छुपाते देखा॥
    बढ़िया शैर हैं पहले में बिहारी की विरह उत्तप्त नायिका याद आ गई जिसके विरह की अग्नि से इत्र फुलेल की शीशी भर इत्र नायिका पर उड़ेलने से पहले ही भाप बन उड़ जाती थी .
    सोमवार, 10 सितम्बर 2012
    आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त
    .

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