हाय मैंने जो कभी उसको लजाते देखा
खंज़रे चश्म को हाथों से छुपाते देखा
डसके बलखाती हुई कौन गयी नागन इक
होश हँसते हुए इस दिल को गँवाते देखा
ग़ुस्लख़ाने के दरीचों से लपट का भभका
जाके जो देखा तो शोले को नहाते देखा
लोग मानेंगे नहीं फिर भी बता देता हूँ
चाँद को मैंने मेरी नींद चुराते देखा
तेरी ही मिस्ल हुई जा रही क़ुद्रत ग़ाफ़िल
बिजलियाँ ज़ुल्फ़ों को ही दिल पे गिराते देखा
-‘ग़ाफ़िल’
खंज़रे चश्म को हाथों से छुपाते देखा
डसके बलखाती हुई कौन गयी नागन इक
होश हँसते हुए इस दिल को गँवाते देखा
ग़ुस्लख़ाने के दरीचों से लपट का भभका
जाके जो देखा तो शोले को नहाते देखा
लोग मानेंगे नहीं फिर भी बता देता हूँ
चाँद को मैंने मेरी नींद चुराते देखा
तेरी ही मिस्ल हुई जा रही क़ुद्रत ग़ाफ़िल
बिजलियाँ ज़ुल्फ़ों को ही दिल पे गिराते देखा
-‘ग़ाफ़िल’
डसके बलखाती हुई कौन गयी नागन इक,
ReplyDeleteहोश हँसते हुए इस दिल को गँवाते देखा।
बहुत खूब
तेरा क्या ऐ जुनूने- इश्क़! कुछ हमारी सुन,
ReplyDeleteमिस्ले- अख़्गर हमीं ने ख़ुद को जलाते देखा।
अंतर्मन को उद्देलित करती पंक्तियाँ, बधाई
तेरा क्या ऐ जुनूने- इश्क़! कुछ हमारी सुन,
ReplyDeleteमिस्ले- अख़्गर हमीं ने ख़ुद को जलाते देखा।...बहुत खूब गाफिल जी.......
वाह बेहतरीन !!!!
ReplyDeleteबहुत खूब गाफिल जी...
तेरी तरह ही हुई जा रही कुदरत ग़ाफ़िल,
ReplyDeleteदिल पे सौ बिजलियाँ जुल्फ़ों को गिराते देखा॥
Bahut khoob..wah!!!!!
अच्छा लगा इसे ग़ज़ल को पढ़ना।
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल....
ReplyDeleteनज़र से मिल के इक नज़र को लजाते देखा।
ReplyDeleteमखमली दस्त से खंजर को छुपाते देखा॥
डसके बलखाती हुई कौन गयी नागन इक,
होश हँसते हुए इस दिल को गँवाते देखा।
बहुत खूब गाफ़िल जी..
touché! unexampled, truely awesome ghazal.....real magnum opus!...thanxtouché! unexampled, truely awesome ghazal.....real magnum opus!...thanx
ReplyDeleteनिवेदन है कि मेरी भी और बेसुरम जैसे ब्लॉग के लिंक,जिनपर आप फिलहाल कुछ पोस्ट नहीं कर रहे हैं,हटा दें।
ReplyDeleteलपट सी उठ रही थी उसके ग़ुस्लख़ाने से,
ReplyDeleteजो गया पास तो शोले को नहाते देखा।...aap ki ek aur behtarin ghazal,,dil mast mast ho gaya
लपट सी उठ रही थी उसके ग़ुस्लख़ाने से,
ReplyDeleteजो गया पास तो शोले को नहाते देखा।,,,aap ki ek aur dil ko choo lene wali ghazal...kamal ka likha hai,,,badhayee
नज़र से मिल के इक नज़र को लजाते देखा।
ReplyDeleteमखमली दस्त से खंजर को छुपाते देखा॥
Awesome !
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लपट सी उठ रही थी उसके ग़ुस्लख़ाने से,
ReplyDeleteजो गया पास तो शोले को नहाते देखा।|
भैया जी !!
नहाने के लिए कौन सी सामग्री
इस्तेमाल की जा रही है ??
उफ !
ReplyDeleteअरे आप तो
बिल्कुल भी
नहीं शर्माते हैं
शोले को
नहाते हुऎ
देखने के लिये
कैसे चले जाते हैं?
शुशील भाई अनपेक्षित जगह पर उठ रही आग की लपटों को देख कर कोई भी जिम्मेदार और सभ्य व्यक्ति वहां जाकर देखना चाहेगा कि माज़रा क्या है? कहीं कोई बुरा हादिसा तो नहीं हो गया? इसमें शर्म जैसी कोई बात ही नहीं है...फिर भी आपकी टिप्पणी बेशक़ीमती है...
Deleteनायाब...
ReplyDeleteग़ज़ल के सभी अशआर बहुत उम्दा हैं!
ReplyDeleteदीवाने-आलम दिले-आजार न होते..,
ReplyDeleteदीदा महरूम हैं सरकार वर्ना दीदार न होते.....
लपट सी उठ रही थी उसके ग़ुस्लख़ाने से,
ReplyDeleteजो गया पास तो शोले को नहाते देखा।
नज़र से मिल के इक नज़र को लजाते देखा।
मखमली दस्त से खंजर को छुपाते देखा॥
बढ़िया शैर हैं पहले में बिहारी की विरह उत्तप्त नायिका याद आ गई जिसके विरह की अग्नि से इत्र फुलेल की शीशी भर इत्र नायिका पर उड़ेलने से पहले ही भाप बन उड़ जाती थी .
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त
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