(मौन की महिमा तो निराली है ही किन्तु समय पर न बोलना भी कितना घातक हो जाता है यह बात सहज स्वीकार्य है। मेरी यह प्रविष्टि इससे पूर्व की प्रविष्टि ‘मौन-महिमा’ पर आई तमाम ऐसी प्रतिक्रियाओं, जिससे प्रतिक्रियाकर्ता के मौन साधने का उपक्रम ज़ाहिर होता है, का प्रतिफलन है।)
सजनवा तू भी तो कुछ बोल,
तू क्यूँ होके मौन है बैठा, बोल न मिलती मोल।
सजनवा तू भी...
देख तो यह जग बोल रहा है, अपनी-अपनी खोल रहा है,
कुछ तेरे भी मन में होगा, मन की गाँठें खोल।
सजनवा तू भी...
ना बोला तो जग बोलेगा, इस दुनिया में बिस घोलेगा,
अब ललकार दे बाचालों को, अब बतियाँ ना तोल।
सजनवा तू भी...
ग़ाफ़िल! ओंठ खुलें अब तेरे, लघुता-मरजादा के घेरे
कब तक बाँध रखेंगे तुझको, अब ये बन्धन खोल।
सजनवा तू भी...
-ग़ाफ़िल
अब तो बिन बोले नही रहा जाता...उम्दा "अमौन महिमा"...
ReplyDeleteलोक से जुड़ा हुआ बहुत प्यारा गीत है गाफ़िल जी। वधाई आपको। "दुनियाँ " को दुनिया कर दीजिये क्योंकि "दुनियाँ" अशुद्ध शब्द है।
ReplyDeleteअब भी अपनी पहले के मत पर क़ायम हूं ...
ReplyDeleteशब्द तो शोर है तमाशा है,
भाव के सिंधु में बताशा है।
मर्म की बात होठ से न कहो,
मौन ही भावना की भाषा है।
वाह ...बहुत खूब कहा है ..।
ReplyDeleteदेख तो यह जग बोल रहा है, अपनी-अपनी खोल रहा है,
ReplyDeleteकुछ तेरे भी मन में होगा, मन की गाँठें खोल।
बहुत अच्छी रचना..वाह!!!!
cheen kar alfaaj mere poochte ho chup rahne ki vajha kya hai!
ReplyDeletekuch bolun ya maun rahun bata teri raja kya hai!!
dono hi soorat me bahut khoosrat likha hai.aapko badhaai.
उम्दा
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteगाना याद आ गया
सजनवा बैरी हो गए हमार.....
खूब कहा है
ReplyDeleteना बोला तो जग बोलेगा, इस दुनिया में बिस घोलेगा,
ReplyDeleteअब ललकार दे बाचालों को, अब बतियाँ ना तोल।bahut sahi...
बहुत सुंदर अभिब्यक्ति /बधाई आपको
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteकब तक मौन.....बढ़िया!!
ReplyDeleteमन की गांठे खोल, सजनवा तू भी तो कुछ बोल....
ReplyDeleteवाह बड़े भईया... आनंद आ गया इस सुन्दर गीत को पढ़...
सादर...
जहाँ बोलना ज़रूरी हो वहां चुप रहना अन्याय है .
ReplyDeleteये सजनवा खुल के बोलने वाला नही जब तक आप खुल के नही लिखेंगे सीधे सीधे बोलिये गेट वेल सून
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, खूबसूरत
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसजनवा तू तो बोल पर मत खोल्रो मेरी पोल
ReplyDeleteग़ाफ़िल! ओंठ खुलें अब तेरे, लघुता-मरजादा के घेरे
ReplyDeleteकब तक बाँध रखेंगे तुझको, अब ये बन्धन खोल।
वाह ...बहुत खूब !
आनंद आ गया ...
ना बोला तो जग बोलेगा, इस दुनिया में बिस घोलेगा,
ReplyDeleteअब ललकार दे बाचालों को, अब बतियाँ ना तोल
sundar post...dhanyawaad..:)
http://aarambhan.blogspot.com/2011/08/blog-post_12.html
आपको रक्षा बंधन की बधाई
ReplyDeleteमन की बात अगर अंदर ही रह जाए तो ...क्या उर्जा धनात्मक होगी या रिन्तात्मक ...यह खोज का विषय है
सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeletewaah! bahut badiya!
ReplyDeleteरक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.
ReplyDeleteरक्षाबंधन की आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..वाह वाह..पिछली पोस्ट भी पढ़ी। मौन पर संग्रह करने योग्य छंद।..आभार आपका।
ReplyDeleteबढ़े आपके परमार्थ की कमाई, आपके क़द की उंचाई॥
ReplyDeleteस्वतंत्रता-दिवस की मंगल-कामनाएं॥
जय भारत!! जय जवान! जय किसान!!
बहुत ही भाव संसिक्त,रस माधुरी समेटे बड़े फलक का अद्भुत गीत . मन की गांठे खोल, सजनवा तू भी तो कुछ बोल....
ReplyDeletehttp://veerubhai1947.blogspot.com/
रविवार, १४ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Sunday, August 14, 2011
चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.
ReplyDeleteना बोला तो जग बोलेगा, इस दुनिया में बिस घोलेगा,
ReplyDeleteअब ललकार दे बाचालों को, अब बतियाँ ना तोल
बहुत ही सुंदर और प्रेरक गीत।
सजनवा तू भी तो कुछ बोल,
ReplyDeleteतू क्यूँ होके मौन है बैठा, बोल न मिलती मोल।
लाजवाब....
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.
उम्दा पोस्ट बधाई मिश्र जी
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