Friday, July 10, 2015

लब तड़पते रहे तिश्नगी रह गई

बादा-ए-चश्म गो तू पिलायी मगर
लब तड़पते रहे तिश्नगी रह गयी

-‘ग़ाफ़िल’


1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ...उम्दा !

    आभार !
    बहुत दिनों बाद फिर से ब्लॉग पे किर्यान्वित हुआ हूँ !
    मेरे ब्लॉग पर पधारने का कष्ट करें !

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