आप बन ठनके जो निकलते हैं
यूँ भी सौ आफ़्ताब जलते हैं
अब्र शर्माए सिमट जाए जब
ज़ुल्फ़ लहराके आप चलते हैं
जाम आँखों का आपकी पीकर
याँ तो आशिक़ हज़ार पलते हैं
क्या क़शिश है के जी जला कर हम
आपके इश्क़ में पिघलते हैं
लोग बदनाम ही किए फिर भी
हम तो आशिक़ हैं हम मचलते हैं
जी तड़पता है बहुत तब ग़ाफ़िल
आप पहलू से जब भी टलते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
यूँ भी सौ आफ़्ताब जलते हैं
अब्र शर्माए सिमट जाए जब
ज़ुल्फ़ लहराके आप चलते हैं
जाम आँखों का आपकी पीकर
याँ तो आशिक़ हज़ार पलते हैं
क्या क़शिश है के जी जला कर हम
आपके इश्क़ में पिघलते हैं
लोग बदनाम ही किए फिर भी
हम तो आशिक़ हैं हम मचलते हैं
जी तड़पता है बहुत तब ग़ाफ़िल
आप पहलू से जब भी टलते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
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