Saturday, July 04, 2015

मिरे वास्ते आखि़री रात होगी

न जिस रात तुझसे मुलाक़ात होगी।
मेरे वास्ते आख़िरी रात होगी।।

बहुत हो चुकी गुफ़्तगू होश में अब,
चलो मैक़दे में वहीं बात होगी।

बहारों ने फिर से सजायी है महफ़िल,
शरारों की फिर से ख़ुराफ़ात होगी।

तेरे चश्म का तीर मुझको लगा तो,
ये मेरे लिए तेरी सौगात होगी।

ग़ज़ब है उमस और बिजली भी गुम है,
न कुछ है अंदेशा के बरसात होगी।

थी ग़ाफ़िल की बातों से तक़लीफ़ सबको,
तो अब गोर में है न अब बात होगी।।

-‘ग़ाफ़िल’

1 comment:

  1. बहारों ने फिर से सजायी है महफ़िल,
    शरारों की फिर से ख़ुराफ़ात होगी।

    तिरे चश्म का तीर मुझको लगा तो,
    ये मेरे लिए तेरी सौगात होगी।

    वाह ।

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