गर ये तेरी कही नहीं होती
बात इतनी लगी नहीं होती
होश आया तो यह ख़याल आया
ज़िन्दगी मैकशी नहीं होती
बातों बातों में रूठना तेरा
यूँ सनम आशिक़ी नहीं होती
मुझसे जलता नहीं कोई भी तू जो
मुस्कुराकर मिली नहीं होती
आखों में तू न यूँ ठहरती मेरे
तो मेरी किरकिरी नहीं होती
छू के तेरा बदन जो आती नहीं
यूँ हवा संदली नहीं होती
जाम होंटों का जो पिया तो लगा
मैकशी भी बुरी नहीं होती
आज ग़ाफ़िल को यूँ न बहका तू
ज़ेब कोई सिली नहीं होती
-‘ग़ाफ़िल’
बात इतनी लगी नहीं होती
होश आया तो यह ख़याल आया
ज़िन्दगी मैकशी नहीं होती
बातों बातों में रूठना तेरा
यूँ सनम आशिक़ी नहीं होती
मुझसे जलता नहीं कोई भी तू जो
मुस्कुराकर मिली नहीं होती
आखों में तू न यूँ ठहरती मेरे
तो मेरी किरकिरी नहीं होती
छू के तेरा बदन जो आती नहीं
यूँ हवा संदली नहीं होती
जाम होंटों का जो पिया तो लगा
मैकशी भी बुरी नहीं होती
आज ग़ाफ़िल को यूँ न बहका तू
ज़ेब कोई सिली नहीं होती
-‘ग़ाफ़िल’
bahut khoob
ReplyDeleteआभार वन्दना जी
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