जब हमारी गली से वो जाने लगे।
मुस्कुरा कर हमें आजमाने लगे।।
अब उन्हें भी जफ़ा का मिलेगा सिला,
हम उन्हें रफ़्ता रफ़्ता भुलाने लगे।
आँधियों से तो लड़ती शम्आ क़ुफ़्र यह,
के पतंगे आ ख़ुद को जलाने लगे।
गीत गाया किए वो मुहब्बत का, पर
जाने क्यूँ हमको झूठे फ़साने लगे।
दिल की बस्ती में सैलाब सा आ गया,
चश्म दो जब भी आँसू बहाने लगे।
साथ देता है ग़ाफ़िल भला कौन? जब
कोई, मज़्बूर दिल को सताने लगे।।
मुस्कुरा कर हमें आजमाने लगे।।
अब उन्हें भी जफ़ा का मिलेगा सिला,
हम उन्हें रफ़्ता रफ़्ता भुलाने लगे।
आँधियों से तो लड़ती शम्आ क़ुफ़्र यह,
के पतंगे आ ख़ुद को जलाने लगे।
गीत गाया किए वो मुहब्बत का, पर
जाने क्यूँ हमको झूठे फ़साने लगे।
दिल की बस्ती में सैलाब सा आ गया,
चश्म दो जब भी आँसू बहाने लगे।
साथ देता है ग़ाफ़िल भला कौन? जब
कोई, मज़्बूर दिल को सताने लगे।।
दिल की बस्ती में सैलाब सा आ गया,
ReplyDeleteचश्म दो जब भी आँसू बहाने लगे।
ये शेर जबरदस्त है।
काबिले-तारीफ़ ग़ज़ल ।
आभार महेन्द्र जी
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