तुम्हारी बेरुख़ी है जो हजर (पत्थर) की बात करते हैं।
वगरना बारहा हम तो क़मर (चाँद) की बात करते हैं।।
हमारे खेत में है लहलहाती फ़स्ल ग़ज़लों की,
हमारे गाँव वाले अब बहर की बात करते हैं।
सलीका है नहीं जिनको वफ़ादारी निभाने का,
वही हमसे मुहब्बत के हुनर की बात करते हैं।
कभी दिल चाक कर देते हैं वो बेबाक लहजे से,
कभी मासूमियत से चश्मे तर की बात करते हैं।
जिन्हें फ़ुर्सत नहीं अपने हरम से दूर जाने की,
वही ऐयाश राहे पुरख़तर की बात करते हैं।
ज़माने की हसीं बातों से होना कुछ नहीं हासिल,
लिहाजा अब ज़रा ख़ूने जिगर की बात करते हैं।।
-‘ग़ाफ़िल’
वगरना बारहा हम तो क़मर (चाँद) की बात करते हैं।।
हमारे खेत में है लहलहाती फ़स्ल ग़ज़लों की,
हमारे गाँव वाले अब बहर की बात करते हैं।
सलीका है नहीं जिनको वफ़ादारी निभाने का,
वही हमसे मुहब्बत के हुनर की बात करते हैं।
कभी दिल चाक कर देते हैं वो बेबाक लहजे से,
कभी मासूमियत से चश्मे तर की बात करते हैं।
जिन्हें फ़ुर्सत नहीं अपने हरम से दूर जाने की,
वही ऐयाश राहे पुरख़तर की बात करते हैं।
ज़माने की हसीं बातों से होना कुछ नहीं हासिल,
लिहाजा अब ज़रा ख़ूने जिगर की बात करते हैं।।
-‘ग़ाफ़िल’
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