Monday, August 29, 2011

हँसके मेरे क़रीब आओ तो

फिर भले रस्म ही निभाओ तो
हँसके मेरे क़रीब आओ तो

इक पड़ी चीज़ जो मिली तुमको
मेरा गुम दिल न हो दिखाओ तो!

आईना आपकी करे तारीफ़
यार अपना नक़ाब उठाओ तो

आगजन तुमको मान लूँगा मैं
आग दिल में अगर लगाओ... तो!!

दिल है नाशाद ये भी कम है क्या
जो कहे हो के क़स्म खाओ तो

यूँ भी क्या रूठना है ग़ाफ़िल से
एक अर्सा हुआ सताओ तो

-‘ग़ाफ़िल’

22 comments:

  1. बहुत खूब ......शानदार

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  2. जामे- उल्फ़त का तक़ाजा किसको,
    जामे- नफ़रत सही, पिलावो तो!
    bahut badhiyaa

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  3. वाह ...बहुत खूब कहा है ।

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  5. बहुत शानदार गज़ल्।

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  6. मर - मिटने को तैयार है गाफिल |
    मुट्ठियाँ भींच के दबाया जो दिल |

    हड्डियाँ भी कसमसाने लगीं मेरी ---
    जान ले लो, मारते क्यूँ तिल-तिल |

    हमको क्या ?? मरो ||

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  7. यूँ भी मुँह फेरना क्या 'ग़ाफ़िल' से
    एक अर्सा हुआ, सतावो तो!

    wah!
    kamaal kar diya...

    आइये मेरे नए पोस्ट पर....
    www.kumarkashish.blogspot.com

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  8. इक पड़ी चीज़ जो मिली है तुझे,
    मेरा ग़ुम दिल न हो, दिखावो तो!
    धक्क से दिल में लगा। बहुत ख़ूब!

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  9. har baar ki tarah behtreen ghazal.

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  10. वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...।

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  11. बहुत सुंदर, दो लाइनें याद आ रही हैं।

    जब प्यार नहीं है,तो भुला क्यों नहीं देते
    खत किसलिए रखे हो, जला क्यों नहीं देते।

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  12. आग पानी से बुझाने वाले,
    आग पानी में भी लगावो तो!

    वाह वाह सर,
    शानदार ग़ज़ल... सादर बधाई...

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  13. इक पड़ी चीज़ जो मिली है तुझे,
    मेरा ग़ुम दिल न हो, दिखावो तो!

    क्या बात है, बहुत खूब सर जी|

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  14. यूँ भी मुँह फेरना क्या 'ग़ाफ़िल' से
    एक अर्सा हुआ, सतावो तो!

    फिर लिख लेना अशआर नये फुरसत में
    अच्छी गज़ल लिखना हमें सिखावो तो.....

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  15. जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
    दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मना ले ईद.
    ईद मुबारक

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  16. मन को गहरे तक छू गई यह ग़ज़ल....

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  17. फिर से इक रस्म ही, निभावो तो!
    हँस के मेरे करीब आवो तो!सुन्दर ,काबिले दाद अशआर हैं आपके ,
    ईद और गणेश चतुर्थी मुबारक !
    बुधवार, ३१ अगस्त २०११
    जब पड़ी फटकार ,करने लगे अन्ना अन्ना पुकार ....
    ईद और गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई

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  18. 'ग़ाफ़िल' साहब,
    पहले तो हमारी जलन स्वीकार कीजिये, आपकी ऐंठन, पुस्तकालय की नौकरी और गज़ल लिखने की क्षमता पर(ये सब हमारे अधूरे सपने हैं) और फ़िर तारीफ़ स्वीकार कीजिये इस खूबसूरत गज़ल के लिये।
    और हाँ, आपसे प्रोत्साहन मिला, उसके लिये आभार भी:)

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  19. बहुत अच्छी गजल है गाफिल जी |नव वर्ष पर्शुभ्कामानाएं स्वीकार करें |
    आशा

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