Wednesday, July 29, 2015

ग़ज़ल : ख़ुद की तक़्दीर यूँ आज़माते रहे

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बहर-
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

मापनी-
212 212 212 212
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आप रूठा किए हम मनाते रहे
ख़ुद की तक़्दीर यूँ आज़माते रहे

आप उठकर गए रूठ किस्मत गयी
हम अकेले ही आँसू बहाते रहे

वस्ल के गीत लिखता मगर आप ही
हिज़्र के गीत हमसे लिखाते रहे

आपको क्या के हम हैं परीशाँ बहुत
आप जाते रहे मुस्कुराते रहे

कुछ बढ़ी हैं हमारी यूँ दुश्वारियाँ
ख़्वाब जो आप हमको दिखाते रहे

दो क़दम ही निभाना था गर साथ तो
मंज़िलों का पता क्यूँ बताते रहे

-‘ग़ाफ़िल’
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2 comments:

  1. बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..

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