आदाब दोस्तो!
कोई भी दिल तो कभी हो सका न अपना मक़ाम
हर एक लब पे मगर अपना नाम आया है
तमाम फूल किसी और के लिए होंगे
है आया जब भी मेरे ख़ार काम आया है
-‘ग़ाफ़िल’
कोई भी दिल तो कभी हो सका न अपना मक़ाम
हर एक लब पे मगर अपना नाम आया है
तमाम फूल किसी और के लिए होंगे
है आया जब भी मेरे ख़ार काम आया है
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-07-2017) को "शंखनाद करो कृष्ण" (चर्चा अंक 2675) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार आपका
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