Wednesday, July 05, 2017

कोई शब् भर मनाता था किसी का रूठ जाना था

आदाब! दो शे’र आप सबको नज़्र-

तसव्वुर में गुज़ारीं जागकर मैंने कई शब् पर
उन्हें आना नहीं आया जिन्हें ख़्वाबों में आना था

हसीं रातें थीं वे फिर भी भले तारीक रातें थीं
कोई शब् भर मनाता था किसी का रूठ जाना था

-‘ग़ाफ़िल’

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