झम झमाझम मेघ बरसे कड़कड़ाती बिजलियाँ
हिज़्र की तारीक शब् में आजमाऊँ ख़ुद को मैं
किस ख़ता की दी सज़ा सावन में तन्हा कर मुझे
बन सँवर कर जाने जाना क्या रिझाऊँ ख़ुद को मैं
-‘ग़ाफ़िल’
हिज़्र की तारीक शब् में आजमाऊँ ख़ुद को मैं
किस ख़ता की दी सज़ा सावन में तन्हा कर मुझे
बन सँवर कर जाने जाना क्या रिझाऊँ ख़ुद को मैं
-‘ग़ाफ़िल’
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