तक़्दीर है के चलता हूँ ग़ुरबत के रास्ते
भाते हैं गो मुझे भी नफ़ासत के रास्ते
मेरे लिए ही बन्द हुई जा रही है क्यूँ
वह क़ू जहाँ से जाते हैं किस्मत के रास्ते
तुह्मत लगाई जाती यूँ आवारगी की क्या
चल देता गर कभी मैं ज़ुरूरत के रास्ते
पा जाऊँगा ही तुझको हो ग़ाफ़िल यक़ीं अगर
तो क्यूँ क़ुबूल कर न लूँ ज़ुर्रत के रास्ते
-‘ग़ाफ़िल’
भाते हैं गो मुझे भी नफ़ासत के रास्ते
मेरे लिए ही बन्द हुई जा रही है क्यूँ
वह क़ू जहाँ से जाते हैं किस्मत के रास्ते
तुह्मत लगाई जाती यूँ आवारगी की क्या
चल देता गर कभी मैं ज़ुरूरत के रास्ते
पा जाऊँगा ही तुझको हो ग़ाफ़िल यक़ीं अगर
तो क्यूँ क़ुबूल कर न लूँ ज़ुर्रत के रास्ते
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-07-2017) को "गोल-गोल है दुनिया सारी" (चर्चा अंक-2656) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'