हुई तो रज़ा पर ज़रा देर से
है बात इसपे ठहरी के आ देर से
सँभालूँगा कैसे बताओ कोई
मज़ा प्यार का गर मिला देर से
इशारे के बाबत मुझे अब लगा
किया तो उसे पर किया देर से
वो दिल तक मेरे क्यूँ न पहुँचा अभी
है रस्ता बुरा या चला देर से
सहर से ही ग़ाफ़िल दरे बज़्म है
हुई शाम की इब्तिदा देर से
-‘ग़ाफ़िल’
है बात इसपे ठहरी के आ देर से
सँभालूँगा कैसे बताओ कोई
मज़ा प्यार का गर मिला देर से
इशारे के बाबत मुझे अब लगा
किया तो उसे पर किया देर से
वो दिल तक मेरे क्यूँ न पहुँचा अभी
है रस्ता बुरा या चला देर से
सहर से ही ग़ाफ़िल दरे बज़्म है
हुई शाम की इब्तिदा देर से
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९जनवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
लाजवाब गजल
ReplyDeleteवाह!!!
सुंदर !
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल
सादर