Thursday, January 18, 2018

है रास्ता बुरा या चला देर से

हुई तो रज़ा पर ज़रा देर से
है बात इसपे ठहरी के आ देर से

सँभालूँगा कैसे बताओ कोई
मज़ा प्यार का गर मिला देर से

इशारे के बाबत मुझे अब लगा
किया तो उसे पर किया देर से

वो दिल तक मेरे क्यूँ न पहुँचा अभी
है रस्ता बुरा या चला देर से

सहर से ही ग़ाफ़िल दरे बज़्म है
हुई शाम की इब्तिदा देर से

-‘ग़ाफ़िल’

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९जनवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. लाजवाब गजल
    वाह!!!

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  3. वाह
    बहुत सुंदर गजल
    सादर

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