एक दिन जाती ये ज़ीनत देखता रह जाएगा
बस ग़ुरूरे ख़ाम ही इस हुस्न का रह जाएगा
माग लेगी ज़िन्दगी तेरी ही गर तुझसे कभी
आदमीयत की सनद फिर क्या भला रह जाएगा
जाने क्यूँ आने लगा अब जी में अपने यह ख़याल
तू चला जाएगा दिल से गर तो क्या रह जाएगा
गर तसव्वुर में न आएगा तू आगे भी कभी
वक़्त गुज़रेगा मगर वादा वफ़ा रह जाएगा
यूँ ही गर होता रहा इंसाफ़ में लेटो लतीफ़
मुद्दई ख़प जाएँगे और मुद्दआ रह जाएगा
कर ही दे! बाकी रहा करना अगर इज़्हारे इश्क़
हो न हो कुछ और लेकिन दिल ख़फ़ा रह जाएगा
इस तरह के मज़्हबी उन्माद के ज़ेरे असर
देखना ग़ाफ़िल अकेला देवता रह जाएगा
-‘ग़ाफ़िल’
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